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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

आटा

बहुत सारे लोग डेली आटा खरीद कर घर चलाते हैं। 
बहुत सारे लोग डेली दोस्तों के हाटस्पाट से अपने 
मोबाइल का डाटा कनेक्ट कर के अपना काम चलाते हैं।
ये दोनों तो अब लगभग समाप्ती के कगार पर होंगे। 
बहुत सारे लोग एक महीने का राशन घर में रखते हैं। 
और इससे ज्यादा लोग 28 दिन का डाटा मोबाइल में 
रखते हैं। 
ये लोग भी अब अपने आटा और डाटा के समाप्ति के 
के कगार पर हैं काफी लोगों के आटा और डाटा समाप्त 
भी हो चुके होंगे ।
कम से कम आधी आबादी का न्यूनतम खर्च दो सौ से 
पांच सौ तक की डेली है जिन्हें ये फार्मूला ज़िंदा रखता है ।
डेली काम डेली पैसा। 
काम बन्द पैसा बन्द  ।
ये लोग किस मुकाम पर पहुंच गये होंगे ?
सुना है लोग कहते हैं कि भारत में जन्म लेने वाला बच्चा 
भी कर्जदार होता है। 
अब ये बात समझ में नहीं आती की भारत बिदेश से कर्जा ले और कर्जदार देश का एक एक बच्चा होता है तो यहां 
हिन्दू मुस्लिम तो रहे नहीं 
अमीर गरीब तो रहे नहीं 
ए पी एल, बी पी एल तो रहे नहीं 
सबका हिसाब बराबर है न
कर्जा तो हर बच्चे पर है न
तो  फिर कैटेग्रियां क्यों  ?
खैर कोई बात नहीं करे कोई और , भरे कोई और। 
जिनके पास है वो आपातकालीन स्थिति में देश की
सेवा करें जिनके पास नहीं है देश उनके एक एक बच्चे 
की सेवा करे चाहे वो किसी भी क्लास का हो 
कैटेग्री सिस्टम को हटाया जाए , जब लोग बचेंगे तो 
उन्हें जैसे चाहना बांट देना। अभी वे सभी लोग जो 
संपन्न हैं चुनाव प्रचार की तरह खुद और अपने आदमियों द्वारा हर एक घर तक आटा डाटा के साथ हर एक आवश्यक चीजों के साथ पहुंचे इसी की जरूरत है और 
इसी में भलाई है  , यही मानव सेवा है, यही देश भक्ति है।
आप लोग खुद विचरक हैं मुनि भी हैं जो मुझसे छूट गया उस पर विचार करें और मनन भी करें। 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

पेसेन्ट

कुछ हर्ट के पेसेन्ट हैं ।
कुछ ब्लडप्रेशर के पेसेन्ट हैं ।
कुछ टीबी के पेसेन्ट हैं। 
कुछ दमा के पेसेन्ट हैं। 
कुछ न्यूरो के पेसेन्ट हैं। 
कुछ बदलते हुए मौसम और वातावरण की वजह से 
सर्दी जुखाम बुखार के पेसेन्ट हैं। 
और मालिक करे कि किसी को कोई रोग न हो। 
ऐसे में बिना कारण पूछे कृप्या किसी की भी पिटाई न करें। 
मैं देख रहा हूँ न्यूज के माध्यम से कि एक आदमी पर
चार पाच पुलिस वाले अपने नामर्दी का सबूत दे रहे हैं। 
जनता वर्दी की इज्जत करती है लेकिन तुम्हारी गुण्डागर्दी ने वर्दी की इज्जत को धूल में मिला कर रख दिया है। 
यही वजह है कि आज सिवाए गाली के कोई इज्जत की
नजर से नहीं देखता सब गिरी हुई नजर से देखते हैं। 
आज के महामारी में कृप्या आप भी इंसानियत से पेश 
आएं । दुनियां के हर काम प्रेम से भी अंजाम दिये जा 
सकते हैं। मनबढई कर के लोगों की हाय और बददुआ 
न बटोरें क्यों कि ये पाप आप से होते हुए आप के बच्चों 
परिवार और खान्दान तक मडराता रहता है। 

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

ओबा

ऐसा क्या किया मानव जात ने कि उसे इतना नाराज
होना पड़ा कि आज पुरी दुनियां ओबा के मंह पर आ 
खड़ी हुई है। 
मुझे लगता है कि हर लोगों को हर लोगों ने बहुत दुख 
पहुंचाया है। 
तुम्ही शुरुआत भी हो और तुम्ही अन्त भी हो। 

मंगलवार, 31 मार्च 2020

बादशाहियत

जिन्हों ने अल्लाह को राजी करने के लिए 
अपने बादशाहियत की गद्दी छोड़ दी। 
आज उन्हीं के कदमों में दुनियां झुकी है। 
उन्हें पता था कि दुनियां एक दिन फना
होने वाली है तो चन्द दिनों की हुकूमत का क्या 
उन्हें दुनियां के ताजो तख्त की न लालच थी और 
न परवाह उन्हें सिर्फ दीन की चाहत और लालच थी 
ताकी मरने के बाद भी अमर हो सकें। 
मगर आज लोगों को दुनियां और दुनियां के ऐशो इसरत
की चहत है चाहे जितने भी अपराध, पाप और अन्याय
क्यों न हो जाएं  ।

गुरु

हमारा देश अध्यात्म गुरू रहा है और रहेगा भी। 
इसमें हिन्दू  , मुस्लिम , सिख, ईसाई, जैन, पारसी
इत्यादि सभी वर्गो से सन्त महात्मा हुए हैं। 
आज भी हैं और आगे भी होते रहेंगे। 
आज हम पुर्वजों की प्रथा छोड़ कर ज्यादा तर 
वैग्यानिक विधियों पर आधारित होते जा रहे हैं। 
हमें अपनी सदियों पुरानी आध्यात्मिक परंपरा को
कभी नहीं छोड़ना चाहिए। 
इसमें लींन रहते हुए वैग्यानिक आविश्कारों का भी 
उपयोग करें। 
पहले जब कोई सुविधा नहीं थी तब भी महामारियां 
आती थी और ऐसी विकराल रुप में कि गांव का गांव
खाली हो जाता था। उस वक़्त लोग हैजा ताऊन से 
लेकर ओबा माई तक को तंत्र मंत्र कुछ टोटके और 
दुवा ताबीज से छुटकारा दिलाते थे। 
बचपन में सुने हुए ये वाक्य -
जा तुहके ओबा माई ले जाएं। 
ओबा के मुंहे में चल जइते त संतोष मिल जात। 
बहुत ही बैकवर्ड गांवों में आज भी ऐसे वाक्य सुनने को 
मिल ही जाते हैं। 
अन्त में मैं सभी धर्मों के गुरूओं संतों महात्माओं ओझा
सोखा से यही कहूंगा कि अपने अपने ग्यान और रिति 
रिवाज के मुताबिक इस महामारी रूपी ओबा माई को 
मानकर भगाने की कोशिश करें ।

सोमवार, 30 मार्च 2020

यूजर

 जन्म लेने से लेकर मरने तक सभी लोग उपभोक्ता हैं। 
पहले गवर्नमेन्ट की व्यवस्थाओं के। 
दूसरे बिजनेस मैन के। 
उसके बाद सामाजिक, धार्मिक तथा अन्य के। 
बिजनेस में आज सबसे बड़ा नेटवर्क मोबाइल सिम
और उसके रिचार्ज का है। 
मैं समझता हूँ कि आज भारत में 95% लोग इसके युजर हैं जिस भी नियम को बनाया गया लोगों को भले ही दुखी होना पड़ा मगर कबूल किया चाहे कर्ज ले कर ही रिचार्ज कराना पड़े लोग कराते हैं। 
अब चाहे लोगों के मजबूरियों का फायदा लिया जा रहा हो या कंपनियों की मजबूरी हो लेकिन जिसके जितने यूजर बन चुके हैं वो अब खतम नहीं होंगे। 
आज जो महामारी हमारे देश में आई है ये बहुत ही 
भयावह है ऐसे में घर से निकलना बहुत बड़े खतरे को
मोल लेने के बराबर होगा और ये खतरा लेकर भी क्या 
करेंगे जब हर तरफ हर चीज़ की दुकानें बन्द हैं ।
ऐसी परिस्थिति में मैं यही कहुंगा कि जितनी भी रिचार्ज
कंपनियां हैं वे अपने यूजरों को एक महीने की आउटगोइंग इनकमिंग और डाटा सहानुभूति में दें ताकी जो लोग जहाँ भी फंसे हैं वे अपनों के साथ ही साथ सरकारी एवं गैर सरकारी सहायता केन्द्रों से जुड़ सकें ।
यह सहयोग इस दुख की घड़ी में जनता के लिए बहुत ही
लाभकारी सिद्ध होगा। जो हमेशा याद रहेगा। 

रविवार, 29 मार्च 2020

महामारी

आज इस महामारी में जहां बार बार लोगों से 
अपने अपने घरों में रहने के लिए कहा जा रहा है 
पुलिसकर्मी हिदायतों के बाद पीट कर भी समझा 
रहे हैं ऐसे में अगर कोई जिम्मेदार व्यक्ति घर से बहार 
निकलता है तो बात समझ में आती है कि कोई खास 
जरूरत होगी मगर वे लोग क्या ढूँढ रहे हैं जिनके उपर
कोई जिम्मेदारी ही नहीं है ।

शनिवार, 28 मार्च 2020

रुक जाओ

जो जहां है वहीं रुक जाए मगर कैसे  ?
न रहने को घर, न खाने को रोटी। 
उन वीरों को सत सत नमन की जो पांच सौ
से एक हजार कि,मी, पैदल चलने का जजबा
ही नहीं बल्कि चल रहे हैं। 
जिसमें बिमार भी हैं, नन्हें बच्चे भी हैं सब भूखे
प्यासे हैं भले मर जायें मगर अपनी मंजिल को तैं 
जरूर करेंगे। 
घर पर भी तो मरना ही है महामारी से न सही 
भूख से तो मरेंगे  , संतुस्टी सिर्फ इस बात की है 
कि अपने घर में अपने लोगों के बीच मरने की इच्छा 
है । कोरोना से भी बड़ी महामारी तो ऐसे लोगों की है 
जिनके पास कुछ भी नहीं है। स्पष्ट खुल कर सामने आना शुरू हो चुका है। 
बेहतर तो ये था कि इन सभी लोगों को कोरोना पलायन
कैम्प में ठहराया जाए और सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं जब हालात सुधरें तब लोगों को उनके घर पहुंचवाया जाय वरना लाकडाऊन के बावजूद इस 
महामारी को रोक पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होगा जिसका परिणाम देश की आधी 
आबादी समाप्त हो सकती है। 
वैसे भी देश की एक चौथाई हिस्सा भूख से समाप्त होना तै है। रोज कमाने खाने वालों के उपर तो दोहरी महामारी आ पड़ी है। 
1- कोरोना वायरस 
2- रोटी की चिंता 
     बच्चों के पेट भरने के लिए इन्हें रोटी के आगे 
    कोरोना से कोई डर नहीं। 
    ईश्वर / अल्लाह सबका भला करे। 
    सभी बन्दों को हर रोग और दुख से बचाये।