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गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

कुछ भी हैरत नहीं है दुनियां में

कौन सी चीज खो दिया तुमने ।
आज़ बर्बस ही रो दिया तुमने ।।

चुभ रहा है तुम्हें , आज जो कांटा ।
उस को पहले ही , बो दिया तुमने ।।

कुछ भी हैरत नहीं है दुनियां में ।
मिल रहा है वही जो दिया तुमने ।।

अब चुप-चाप देखते सहते जाओ ।
दुखती रग को जो टो दिया तुमने ।।

वो तो हंसा करता था हर लोगों पर जावेद ।
आज क्यूं मुझसे मिलते ही रो दिया तुमने ।।

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

वक़्त ऐसा भी आने वाला है

रब ने उसको अजीब ढाला है ।
सामने उसके  चांद  काला  है ।।

जो भी देखे वो पूजना चाहे ।
रुप उसका बड़ा निराला है ।।

काट कर मैंने सख्त चट्टानें ।
रास्ता बीच से निकाला है ।।

हक़ भी जीने का छींन लेंगे लोग ।
वक़्त  ऐसा  भी आने  वाला  है ।।

चैन और नींद उड़ गई जावेद ।
रोग  कैसा  ये  हमने पाला है ।।

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

रेगिस्तान की रेत उसे पानी से लहराती हुई झील नज़र आ रही है

वो प्यासा है । रेगिस्तान की रेत उसे पानी से लहराती हुई झील नज़र आ रही है । वो पानी पानी चिल्ला कर निढाल और पस्त हो चुका है । बस अब दम निकलना बाकी है ।आप सक्षम हैं , उसकी जान बचाने में , आप को सुचित कर रहा हूं कि उसे पानी दे कर उसकी जान बचा लें , लेकिन आप को मेरी बातों पर शक है । आप को प्रमाण चाहिए , जब-तक आप प्रमाण प्राप्त करेंगे तब तक उसके प्राण निकल जाएंगे । इसका क्या मतलब है ?
कोई मरता है तो मर जाए लेकिन आप को अपनी संतुष्टि लोगों के जान से प्यारी है ।
प्रमाण तो बाद में भी लिए जा सकते हैं । संतुष्टि तो जान बचाने के बाद भी की जा सकती है ।
आज यही हाल है किसानों का , ग़रीबों का और बेरोज़गारों का , बेरोज़गार और गरीब का क्या होगा ? ये तो बाद की बात है , लेकिन किसानों का कुछ भी नहीं होना है । वो चाहे सारी ज़िन्दगी ऐसे ही धरने पर बैठे रहे , जब सरकार ने कह दिया कि मैं बिल वापस नहीं कर सकता , कुछ संसोधन करने के लिए तैयार हूं तो बात स्पष्ट हो चुकी है ।
कोर्ट का मामला तो एक सुनहरा जाल है । कोर्ट में मंदिर , मस्जिद का भी मामला था , जिसपर पुरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थी , लेकिन इस निर्णय से जनता का विश्वास उठ चुका है । किसान का मामला भी इसी तरह से गुजरेगा ।
आज सिर्फ तीन चीजें ही मुख्य रूप से हाईजैक और हावी है जैसे किसान पर नौजवानों की लाठी , बैलेट गन , पानी की बर्षात और आंसू गैस , फोर्स लगा कर जनता को पिटवाना आम बात है । दूसरी चीज कोर्ट जो हम चाहेंगे वही होगा और तीसरी चीज ई,वी,एम, जहां जितनी सीटें चाहेंगे उतनी निकालेंगे सिर्फ ई,वी,एम ही बंद हो जाय तो सारे राज़ खुल जाएंगे और सत्ता बदल जाएगी ।

रविवार, 27 दिसंबर 2020

मैं उसकी चाहत से संतुष्ट हूं

रब की चाहत में ही मेरी चाहत है । खोना भी उसी के मर्जी से है, और पाना भी उसी के मर्जी से है , अब खोने का डर , और पाने की चाहत से मैं बहुत ऊपर उठ चुका हूं , इस लिए मैं उसकी चाहत से संतुष्ट हूं ।

शनिवार, 26 दिसंबर 2020

मेरी औकात को कभी नापने की कोशिश मत करना

मेरी काबिलियत पर शक मत करना , और मेरी औकात को कभी नापने की कोशिश भी मत करना । तुम्हें जो जरुरत हो उसे मुझसे कहो , तुम मुझसे वो मांगो जो तुम्हें दुनिया का कोई भी व्यक्ति न पुरा कर सके , तुम्हे अगर किसी देश का बादशाह या किसी देश का प्रधानमंत्री भी बनना है । तो भी मुझसे कहो और इतना कहो , कि मैं तुम्हारी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए , अपने रब और उसके रसूल से मांगने के लिए मजबूर हो जाऊं ।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

मेरी मुहब्बत की इन्तहा

ये एक अजीब विडंबना है या कि मेरी मुहब्बत की इन्तहा ।
अपने छोटे छोटे बच्चे अक्सर छोटे छोटे भाई नज़र आते हैं ।
मुहब्बत तो दोनों से बराबर ही है लेकिन जब यादाश्त कमजोर पड़ने लगती है , तो उसी बड़े , छोटे भाई का नाम मुंह से निकल पड़ता है । बचपन की यादें मरते दम तक नहीं जाती , मगर आज तक नहीं समझ पाया कि सब कुछ कैसे भूल कर किनारा कर लेते हैं लोग ।
जिस भाई ने अपनी उंगली पकड़ाकर चलना सिखाया था , और जिस भाई ने मेरी ऊंगली पकड़ कर चलना सीखा था जब दोनों की उंगलियां हमेशा के लिए छूट जाती हैं , तो मेरे जैसे एहसासमंद लोगों का , सिर्फ़ खाली जिस्म रह जाता है , मगर उसमें कोई जान नहीं रहती । तन्हाई , उदासी और खामोशी के काले बादल छा जाते हैं ।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

इससे ग़लत फहमियां बढ़ने लगती हैं

हर समस्याओं का समाधान है मुलाक़ात । और मुलाकात में जरुरी है उन सभी पहलुओं पर बात , जिनके कारण समस्याएं उत्पन्न हुई हैं ।
बहाने बना कर दूरी बनाना , इससे ग़लत फहमियां बढ़ने लगती हैं । जिससे शक मज़बूत होता चला जाता है ।

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

एक दिन इस दुनियां को छोड़ना तो है ही

बहुत अच्छी दुनिया है । 
बहुत सारे स्वाद हैं । 
बहुत तरह के लोग हैं । 
बहुत तरह के आनन्द हैं । 
बहुत सारे सपने हैं। 
बहुत सारी ख्वाहिशें हैं । 
बहुत ही आकर्षक और आस्चर्य जनक भूल भुलैया है । दुःख है ,
सुख है , 
हंसना भी , 
रोना भी , 
अपने भी हैं । 
अपनत्व भी है । 
और प्रेम भी है । 
बचपन भी है । 
लड़कपन भी है । 
जवानी भी है । 
बुढ़ापा भी है । 
यहां स्वर्ग भी है । 
यहां नर्क भी है । 
सब कुछ तो है । 
झूठे को सच्चा भी किया जाता है 
और सच्चे को झूठा भी किया जाता है । 
सिर्फ एक सच्चाई है , 
जिसे कभी कोई झुठला न सका 
और न तो कोई झुठला पाएगा , 
वो है मौत । 
सब कुछ होने के बाद भी अमरत्व यहां नहीं है । 
कोई अमर नहीं रह सकता , 
आखिर मरना तो है ही । 
एक दिन इस दुनियां को छोड़ना तो है ही , 
लेकिन उस घड़ी , 
उस मुकाम,
और  उस कारण को भी कोई नहीं जानता । 
जिस जगह , 
जिस समय , 
जिस कारण से मरना है । 
यह सोंच कर सारी आशाएं निराशा में बदल जाती हैं । 
सारी ख्वाहिशें खत्म सी लगती हैं । 
सारी इच्छाएं कमजोर पड़ जाती हैं । 
दुनिया खाली खाली और वीरान सी लगने लगती है । 
सारे सुर संगीत रोने पिटने जैसी सुनाई पड़ने लगती है । 
मन को बहलाने या वक़्त को काटने का कोई रास्ता नहीं रहता लेकिन स्वयं से मर भी नहीं सकते , 
इस लिए उसी में आ कर डूबना और खोना पड़ता है 
जिसमें पुरी दुनियां डूबी और खोई है , 
लेकिन अपने ईमान और अपनी सच्चाई को बचाते हुए ।

मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

कौन से संत, महात्मा, ओझा, सोखा और गुरु को ढूंढ रहे हो

कौन से संत , महात्मा , ओझा , सोखा और गुरु को ढूंढ रहे हो ? कौन से औलिया , फ़कीर और पीर को ढूंढ रहे हो ?
जिसके माध्यम से इस दुनियां में आप पैदा हुए हैं , उस से बड़ा औलिया , फ़कीर और पीर दूसरा और कौंन हो सकता है । ( आस्था और विश्वास ) मुत्तक़ी और परहेज़गार पहले इनके बनो चाहे ये ज़िंदा हों या पर्दा कर गये हों , क्यों कि जब मौत आती है , तो पहले यही लोग आते हैं , और अगर ये लोग ज़िंदा हैं , तो खानदान के बुजुर्ग लोग आते हैं । क्यों नहीं कोई औलिया , फ़कीर या पीर आता है ? । मरते वक्त लोग इन लोगों का नाम नहीं लेते लेकिन 90% लोगों की जुबान से यही सुना जाता है कि लोग अपने ही लोगों का नाम बताते हैं , कि वो मुझे अपने साथ ले जाने आये हैं ।

सोमवार, 21 दिसंबर 2020

अब बहोत फासले हैं हमारे तुम्हारे

कहां अब मुहब्बत कहां वो भाईचारे ।
अब बहोत फासले हैं हमारे , तुम्हारे ।।

कभी वक़्त था , जब तुम्हीं थे हमारे ।
चले थे हम इन्हीं उंगलियों के सहारे ।।

सितारों में क्या डूबना, खोजना ।
दुनिया में अभी बहोत हैं नज़ारे ।।

गांव को , शहर को , लोग लेते हैं गोद ।
क्यूं ?  सड़क के किनारे पड़े हैं बेचारे ।।

उन्हें क्या खबर जिनकी जन्नत यहीं  है ।
नज़र बन्द है सिर्फ तुम्हारे या की हमारे ।।

जावेद मेरे पास भी है रौशन सा चांद ।
उसी से चम- चमाते हैं लाखों सितारे ।।

रविवार, 20 दिसंबर 2020

आप के बाप की भी इंसल्ट कर सकता है

जो आप को अपना समझता है , वो आप की जिंदगी से जुड़ी हुई हर चीज़ को अपना समझता है । जो आप को अपना नहीं समझता , वो आप की इंसल्ट क्या आप के बाप की भी इंसल्ट कर सकता है ।

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है

वक्त ने तोड़ दिया हालात ने भी जकड़ा है ।
ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है ।।

समझ चुका है कि अब मौत ही सजा है मेरी ।
इससे बचने की कोई तरक़ीब लिए अकड़ा है ।।

चलेगी ज़ुबान न आवाज़ गले से निकलेंगी ।
वक़्त इस दुनिया में सबसे ज्यादा तगड़ा है ।।

अजीब लोग हैं यहां सरेआम मुकर जाते हैं ।
ये जाल बुनने वाले आठ पैर के मकडा है ।।

समझ रहे हो तो सब्र कर के जीलेना जावेद ।
यहां सब पतलब परस्ती का सारा झगड़ा है ।।

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

इसका भुगतान तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा

जब बादशाहों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
जब नवाबों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
जब अंग्रेजों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
आज लोकतंत्र है । आज किसी बादशाह या नवाब की हुकूमत नहीं है । तो क्या आज देश में गद्दार नहीं हैं ?
आज तो पहले के उन दौर से ज्यादा देश में गद्दार पैदा हो गये हैं ।
1- देश में भाईचारा को खंडित करने वाला कौन है ?
2- देश में जात , धर्म , और मजहबों को बांटने वाला कौंन है ?
3- देश में देश की सही ख़बर न देने वाला कौंन ?
4- देश में जनता के बीच भेदभाव पैदा करने वाला कौंन है ?
इन सवालों के जवाब को पूरा देश जानता है । ऐसे  लोगों को देश का गद्दार न कहें तो क्या देश भक्त कहा जाएगा ?
एक मकान को बनाने के लिए बहुत सारे लोगों और बहुत सारे मटेरियल्स की जरूरत पड़ती है ठीक वैसे ही एक देश को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए सभी देशवासियों की आवश्यकता होती है । सभी का अपने अपने स्तर से योगदान होता है । इसमें कहीं कोई धार्मिक भेदभाव नहीं होते ।
किसी भी वर्ग , समुदाय या धर्म को ग़लत नजरिए से न देखा जाए और न तो उनको विशेष रूप से एकिकृत कर के गन्दे ढंग से राजनीत की जाय । सबसे पहले दोषी तो वही लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए अपने ही देश में अपने ही देश वासियों को जात पात के रुप में उकसाया और दूसरे जाति के लोगों के प्रति नफ़रत की आग बोना शुरू किया , वो भी ऐसा करने के लिए पार्टी का लाइसेंस तक बनवा डाले हैं ।
क्या संविधान में ऐसा कोई नीयम लिखा है कि हर धर्म के लोग अपनी अपनी पार्टी बनायें ?
ऐसी परंपरा शुरू करने वाले लोगों को तो आजीवन कारावास दे देना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसा करने के लिए कोई सोंच भी न सके नफ़रत होती है मुझे ऐसे लोगों से जो लोग धर्मों और जात पात की राजनीत करते हैं ।
अगर मेरी हुकूमत होती तो मैं उनके ऊपर भी राशुका लगा देता जो समाज में कहीं भी किसी से भी जात का नाम ले लेते या चर्चा करते हुए पाये जाते ।
देश आज़ादी के बाद से पुर्वजों ने जो भाईचारा क़ायम कर के चलते रहे हैं उसे पूरी तरह से तो नहीं तोड़ पाये हैं लेकिन जितना टूटा है उसका अंजाम आप के आंखों के सामने है ।
वह दिन दूर नहीं जब हर एक व्यक्ति को महसूस होगा कि उन्माद या बहकावे में आकर मैंने ग़लत किया है ।
हम जिस परिवेश और परिस्थितियों में जीते हैं उसमें सभी वर्ग , समुदाय के लोगों से आपसी भाईचारे का संबंध होता है 
जब हमारे पुर्वजों ने नहीं छोड़ा तो हम किसी के बहकावे या उन्मादी बातों में क्यों उल्झें । ये अलग बात है कि आज जो नफ़रत में चूर है लेकिन जिंदगी के कुछ ऐसे मोड़ भी आते हैं
जहां हमें सबके साथ की आवश्यकता होती है । इस बात का हमेशा ध्यान रखना कि आने वाली पीढ़ी तुम्हारे नफ़रत की खोखली जड़ को जिस दिन समझ लेगी उस दिन तुम संसार के सबसे बड़े पागल और देश द्रोही की नज़र से देखे जाओगे वो भी अपने ही लोगों के बीच चाहे वो किसी भी धर्म का हो , शिकारी अपना शिकार कर के निकल जाएगा लेकिन उसका भुगतान तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा ।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

देश से देशवासियों की आखरी लड़ाई

किसान जो लड़ाई लड़ रहे हैं । यही देश से देशवासियों की आखरी लड़ाई है । पुरे भारत वासियों की सिम्पैथी किसानों के साथ जुड़ी हुई है । अब इसी में फैसला हो जाएगा कि     " जय "  किसके साथ लगाना है और किसके साथ जोड़ कर बोलना है , जय जवान रहेगा  , जय बिजनेसमैन होगा या जय किसान रहेगा । अन्नदाता की औकात क्य है ? अन्नदाता का सम्मान कितना है ? इनके लिए कितना किया जाता है ? और अन्नदाता को देश कब कितना और क्या देता है ये भी किसी से छुपा नहीं है । किसान बिना कर्ज लिए भी आत्महत्या करता है और छोटे छोटे कर्ज लेकर भी मरता है और सारी जिंदगी नर्क से भी बदतर गुजारता है लेकिन उन बिजनेसमैनों का क्य जो हज़ारों करोड़ कर्ज लेकर विदेशों में अपनी ज़िंदगी स्वर्ग की तरह काटते हैं ।

रविवार, 13 दिसंबर 2020

किसान अपने उगाये हुए सामानों के मुल्य का निर्धारण खुद करें

बहुत सारी चीज़ें ऐसी हैं जिसके मुल्य का निर्धारण गवर्नमेंट ने नहीं बल्कि लोगों ने किया है । होल सेल में भी चोरी और कालाबाजारी होती है । फुटकर रेट में भी चोरी और कालाबाजारी होती है । वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मशीन और शेर तराज़ू में भी घपलेबाजी शामिल है ।
कहीं से कुछ भी लेंगे तो पैसा तो आप को पूरा देना पड़ेगा जिसमें पच्चीस पैसे भी कम नहीं लेगा लेकिन तौल में आप को सामान पुरा नहीं मिलेगा ।
यहां तक कि डब्बा बन्द सामान एवं पैकिंग में भी पूरा वजन नहीं होता । पच्चीस पैसा तो अब बाजार में नहीं चलता , पचास पैसा भी गायब है । एक रुपये का छोटा वाला सिक्का भी कोई नहीं लेता , कोई भी सिक्का हो अब बैंक वाले भी नहीं लेते ।
बहुत सारे बिजनेस दस , पंद्रह ,और पच्चीस पैसे के प्राफिट पर निर्भर होता है ।
जिस जिस चीज का भी गवर्नमेंट ने मुल्य का निर्धारण किया है । उसमें होल सेलर को ईमानदारी से पालन करना चाहिए लेकिन ये लोग भी कीमत बढ़ाकर लेते हैं । अब आप सोंचे कि फुटकर विक्रेता क्या करते होंगे । फुटकर वाले तो अपनी मनमानी करते हैं । जो चाहें रेट लगायें ये उनकी मर्जी ।
मार्केट में अगर सौ दुकान है तो पक्की और प्रिंटेड बिल देने वाले सिर्फ एक या दो लोग ही मिलेंगे बाकी निन्यानबे टैक्स की चोरी करते हैं या टैक्स फ्री हैं ? शायद इसी लिए पक्की बिल नहीं देते ।
मार्केट में किसी भी चीज का मीट हो उसके मुल्य का निर्धारण कौंन करता है ?
मार्केट में कोई भी शब्जी हो उसके फुटकर विक्रेता के मुल्य का निर्धारण कौंन करता है ?
जब फुटकर विक्रेता मुल्य का निर्धारण स्वयं करते हैं तो एक किसान अपने द्वारा उपजाये हुए अन्न की कीमत को क्यों नहीं निर्धारित कर सकता , दलहन फुटकर विक्रेता के वहां पंचानबे रुपये से लेकर एक सौ तीस रुपये तक है ।
शब्जी चालिस रुपये से लगाये अस्सी रुपये तक है ।
आप अगर जिम्मेदार व्यक्ति हैं तो आप को सभी चीजों के कीमतों का पता है । अब आप बताएं कि अगर आप के पास रोटी और चावल नहीं है तो शब्जी और मीट किस काम के अगर आप मार्केट में जाएंगे तो सबसे सस्ता आप को आटा और चावल ही मिलेगा इस लिए मैं किसानों से यही कहना चाहूंगा कि वो अपने अनाज की कीमत के रेट को भी स्वयं निर्धारित कर लें जैसे गेहूं सौ रुपया किलो कर दें , चावल ,एक सौ पच्चीस , आटा एक सौ बीस इसी तरह जितनी भी चिजें उगाते हैं सभी चीजों के मुल्य का निर्धारण खुद ही करें । जिसे आवश्यकता होगी वो खरीदेगा इसमें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है । जब आप उगाएंगे तभी तो लोग पाएंगे , कोई जबरदस्ती नहीं ले सकता आप अपनी मेहनत और क़ीमत को पहचानें ।
जबतक आप खुद रेट का निर्धारण नहीं करेंगे तब तक कोई करने वाला नहीं है । जब बड़े बड़े बिजनेसमैन आप से सस्ते रेट पर लेकर स्टाक करेंगे तो उनकी मर्जी पर निर्भर होगा कि वो किस रेट पर बेचेंगे या कोई प्रोडेक्ट तैयार करेंगे ये उनकी मर्जी पर है ।

गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों जैसी सच्चाई है डॉ तालिब गोरखपुरी की शायरी में

नहीं छोड़ेगी ज़िंदा बदनसीबी मार डालेगी   ।
मुझे लगता है ऐ तालिब ग़रीबी मार डालेगी ।।

या ख़ुदा घबरा गया हूं गर्दिशे अइयाम से   ।
इससे बेहतर है कि दे दे मौत ही आराम से ।।

या इलाही ये मेरा कैसा मुकद्दर हो गया    ।
हाथ में आते ही मेरे सोना पत्थर हो गया ।।

सारा  घर  चूता  रहा  बर्सात  में   ।
न दिन में बच्चे सो सके न रात में ।।

हो गयी  दुनियां  मेरी बर्बाद  कैसे  चुप  रहूं ।
और क़ातिल है अभी आज़ाद कैसे चुप रहूं ।।

भूखे , प्यासे  और  नंगे भर रहें  हैं सिसकियां ।
सुन के मज़लूमों की ये फरियाद कैसे चुप रहूं ।।

ग़रीबी का दर्द दर्शाते हुए ये शेर मशहूर शायर व अदीब डॉ तालिब गोरखपुरी की शायरी से चुने गए हैैं ।
इस तरह के हज़ारों शेर उनकी ग़ज़लों में मौजूद हैं ।
अबतक इनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । जिन में चंद मशहूर किताबों के नाम निम्न लिखित हैं ।
1- उजाले उनकी यादों के ।
2- दास्तांने फिराक ।
3- सितारों से आगे तथा अन्य ।
अबतक इनको अदबी ख़िदमात के लिए अदबी सोसायटीयों ने बहुत से एवार्ड से नवाज़ा है । जिनमें काबिले जिक्र एवार्ड 1- मिर्ज़ा ग़ालिब एवार्ड
2- फिराक गोरखपुरी एवार्ड
3- कृष्ण बिहारी नूर एवार्ड
4- कैफ़ी आज़मी एवार्ड भी शामिल हैं ।

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

अपने साथ बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया

मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे देश का मोडिफिकेशन 80% हो चुका है । लेकिन कोई भी चीज देश हीत या समाज हित के पक्ष में नहीं दिख रही है। बेरोजगारी पहले से और बढ़ गई है , लूट , रहजनी , के साथ क्राईम भी बढ़ गया है ।
कोरोना से पहले कुछ कुछ प्राब्लम थी लेकिन कोरोना अपने साथ बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया , जिसने हर एक व्यक्ति को परिवर्तित कर के रख दिया , जिसे आप कहीं भी देख सकते हैं
पहले का जीवन काफी हद तक सामान्य था , जन मानस के हालात बनते थे और बिगड़ते थे , लेकिन आज बिगड़ने के सिवा बनने का कोई रास्ता नहीं है ।
कोरोना काल में खाद्य सामग्री डोर टू डोर लोग बेचते थे और सस्ता था । हर लोगों के लेने के लायक़ था , लेकिन कोरोना में जैसे ही ढील मिली सामानों की कीमत ने आसमान छू लिया है । दैनिक आवश्यकताओं में कोई भी चीज ऐसी नहीं है कि जिसकी क़ीमत में गिरावट आई हो , यहां तक कि यत्रा भाड़ा भी डबल तिबल हो चुका है । कोरोना महामारी थी , जो सिर्फ इन्शानों पर थी न कि सामानों पर , कोरोना में आज जो ढील दी गई है । इससे ऐसा नहीं है कि देश और देश की जनता मालामाल हो गई है । हर त्राशदी के बाद सब-कुछ सामान्य होने में काफ़ी समय लग जाता है । मगर कीमतें बढ़ाना , यात्रा भाड़ा बढ़ाना ये टेंडेंसी नहीं समझ में आती ।
 छोटे से लेकर बड़े वाहनों को चलाने का एक नियम बनाया गया था जिससे यात्रा करने में भी यात्रीयों के बीच दूरी बनी रहे जैसे- पैर से चलाने वाले रिक्शा पर एक सवारी , तीन चक्का टैम्पू में सिर्फ दो लोग वो भी पीछे सीट पर , चार चक्का वाहन वाले सबसे पीछे दो बीच वाली सीट में दो और 
सबसे आगे एक चालक और एक पैसेंजर इसका पालन सिर्फ फस्ट अन लाकडाऊन में हुआ था जिसके कारण यात्रा भाड़ा बढा था परन्तु सेकन्ड अन लाकडाऊन से कोरोना से पहले वाला नियम लागू लोगों ने खुद कर लिया है । किसी भी नियम का या डिस्टेंसिंग का या मास्क का कोई पालन नहीं है । जब गाडियां ओवरलोड और कस कर चलने लगीं हैं तो किराया भी कम हो जाना चाहिए मगर पैसा ज्यादा दे देना भलाई या मजबूरी जो भी समझते हों लेकिन नियमों का पालन करना जरूरी या मजबूरी नहीं है ?

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

जिसकी पाकेट भरी होती है

लोग कहते हैं कि परदेश में अपने पराए हो जाते हैं । और पराए अपने हो जाते हैं । सारे रिश्ते बन जाते हैं मां , बाप भी मिल जाते हैं । लेकिन ये सब खाली पाकेट नहीं होता , ये सब उसके साथ होता है , जिसकी पाकेट भरी होती है । ये सब यहां भी होता है , अगर आप की पाकेट भरी हुई है ।

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

प्रकृति का सौन्दर्य

उसे भी जाने के हज़ार रास्ते हैं

अगर आप के पास पैसा आने का रास्ता है , तो वो भी आएग , जिसे आप चाहते हैं । और उसे भी आने का रास्ता है । जिसे आप ने कभी सोचा ही नहीं ।
अगर आप के पास पैसा आने का रास्ता नहीं है । तो उसे भी जाने के हजार रास्ते हैं । जिसे आप अपनी जिंदगी से कभी जाने देना नहीं चाहते ।
पाने और खोने का जादू या चमत्कार आप के अंदर नहीं है । सब आप के पैसे के अंदर है ।

रविवार, 6 दिसंबर 2020

सबसे पहले और सबसे बड़ा हल

हर समस्याओं का समाधान सिर्फ कानून ही नहीं है ।
सबसे पहले और सबसे बड़ा हल आपसी बात चित भी होती है । जब बातों से मुआमले हल न हों तो ही कानून का सहारा लें । लेकिन इस बात को याद रक्खें कि कानून से न्याय आप के जीतेजी इस जिंदगी में मिल पाएगा या नहीं ।


शनिवार, 5 दिसंबर 2020

इन्सानों से इन्सानों का छुपा क्या है

इंसानों से इंसानों का छुपा क्या है । सब एक दूसरे की हकीकत को जानते हैं । हां ये अलग बात है , कि कोई अजनबी है । जिसे आप नहीं जानते , तो उसका सब कुछ छुपा है । लेकिन अगर जानने पर आ जाओ , तो उसके प्रतिद्वंदी और उस से जलने वाले , उसके दुश्मन ही उसके सात पुस्त की दास्तान बता देंगे । आप को उस अजनबी से मिलने और बात करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । यही है आधुनिक मानव सभ्यता । जब कुछ छुपा ही नहीं है , तो फिर क्या जनरल और क्या स्पेशल , अगर जनरल और स्पेशल है , तो सिर्फ पैसे की वजह से है । मानवता के नजरिये से अन्याय है । इसी अन्याय को आज लोग अपना स्टैंडर्ड समझते हैं । दिन रात इसी के पीछे भाग रहे हैं । खुद को परेशान और बर्बाद किये जा रहे हैं । जब कि यहां से कुछ भी तुम्हें रिफन्ड नहीं होने वाला सिवाए हताश और निराश होने के । जो वास्तविकता  है  उस  वास्तविकता  को   समझो , अपने आप को और अपने काम को एक नजरिये से देखने और करने की सकारात्मक क्षमता पैदा करो , आप   के उपर जिसका जो अधिकार है उसे पूरी निष्ठा और इमानदारी से निभाते हुए पूरा करो । इसमे कोई कैटेगरी नहीं है । इसमें न कोई स्पेशल है और न तो कोई जनरल ये सब आप के अपने लोग हैं । जिसे आप ने बनाया हो , कमाया हो , या कोई रिलेशन हो , हैं तो आप के ?
तुम्हारे व्यवहार में , तुम्हारी सोंचों में और तुम्हारे कर्मों में ही जनरल और स्पेशल है । इससे मुक्त हो जाने में ही तुम्हारी भलाई है । सभी का एक बराबर स्नेह पाने का कोई और रास्ता नहीं है ।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

कफ़न घसोट शायद ऐसे ही होते हैं

मेरी एक बाग है । एक दिन मेरे एक मित्र ने बाग को देखने और घूमने की इच्छा जताई , मैने कहा ठीक है सुबह में आइए तो चलें दो चार घंटे वही बैठेंगे ।
गर्मी का महीना था , भयंकर गर्मी पड़ रही थी । सुबह आठ बजे के बाद से ही धूप की किरण इतनी तेज लगती थी कि जैसे जिस्म में ही हल जाएगी । ऊपर से कोरोना काल , हर तरफ पुलिसकर्मी घूम रहे थे । जो भी घर से बाहर सड़क पर नजर आ जाता था । तो ऐसी पिटाई करते थे कि जैसे मर्डर का मुजरिम मिल गया हो । खैर मैने बाग में चारपाई और कुर्सी भेजवा दी थी । कुछ देर बाद मित्र महोदय अपने एक साथी के साथ आए । हम लोग बाग की ओर चल पड़े बाग में पहुंचे तो मित्र के साथी तुरन्त चारपाई पर लंबे हो गये हम दोनों लोग कुर्सी पर बैठे बात कर रहे थे । उस वक़्त काफी चर्चित टापिक कोरोना ही था । बातों के दर्मियांन ही मेरी नजर बाग के बाऊंडरी पर पड़ी जो सागौन के पेड़ की कतार से बनाई गयी थी । लकड़ी के पीलर में कंटीला तार भी लगाया गया था लेकिन बाहरी जानवरों ने कई जगहों पर गिरा दिया था ।
एक पेड़ का तना कुछ बदसूरत नज़र आ रहा था । मैने मित्र को साथ में लिया और बाऊंडरी की ओर बढा करीब पहुंचने पर हम दोनों ने देखा एक पेड़ के तने से लगभग पांच फिट ऊंचाई तक उसकी छाल किसी ने निकाल ली थी ।
बहुत दुख हुआ ऐसा लगा जैसे किसी ने जिस्म से खाल खींच ली हो। जैसे कब्र पर पड़ी चादर खीच ली हो । जैसे मुर्दे के ऊपर से कफन खींच लिया गया हो । बहुत देर तक खामोश मैं दुखी मन से देखता रहा , तभी मित्र ने कहा क्या सोंच रहे हैं ? मैने मित्र की ओर देखा और पूछा देख रहे हैं इस पेड़ की हाल? क्या कफन घसोट शायद ऐसे ही होते हैं ? मित्र कुछ न कह सके , ऐसा लगा जैसे वो भी दुखी थे ।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

भले ही आप के धर्म से उसका धर्म अलग हो

मानव की उत्पत्ति मानव से ही हुई है । न कि किसी जानवर से । सृष्टि के सभी मानव एक ही मानव के वंसज हैं ।
आज विभिन्न समुदाय , विभिन्न धर्म , विभिन्न भेषभुसा , विभिन्न भाषाएं सब अलग अलग विचारधारा और वहां के परिवेश के मुताबिक हैं । आप के दो चार भाई या दो चार लड़के हैं तो वो एक विचार धारा के नहीं हैं । भले ही आप के शक्त नियमों का पालन करते हैं । ये तभी तक कर सकते हैं जब तक आप जीवित हैं । और सभी को एक साथ लेकर चलने की आप के अंदर एक मजबूत धारणा है । मगर जिस दिन आप इस दुनियां से चले जाएंगे उसके बाद सभी अपनी अपनी ख्वाहिशों के मुताबिक जीने के लिए आजाद हो जाएंगे । इस लिए न किसी को बुरा कहिए और न किसी के ऊपर कोई कमेंट करें ये उसकी जिंदगी है । वो भी इस दुनियां में अपनी ख़ुशी के मुताबिक जीने के लिए आया है । वो भी स्वतंत्रता पूर्वक न की दास प्रथा के युग में है । मानवता की नजर से देखोगे तो वो तुम्हारा कुछ न कुछ तो जरुर लगेगा भले ही आप के धर्म से उसका धर्म अलग हो ।

बुधवार, 2 दिसंबर 2020

सबसे बड़ा सवाल तो तुम खुद ही हो

दुनियां जबतक खत्म नहीं हो जाएगी तब तक सवाल बनते रहेंगे और उठते रहेंगे ।
क्यों कि सबसे बड़ा सवाल तो तुम खुद ही हो , जबतक तुम हो सवाल बनते रहेंगे जिस दिन जवाब बन क़र उठोगे उस दिन से कोई सवाल न पैदा होगा और न उठेगा । इस लिए सवालों के घनचक्कर से निकल जाओ और जवाब बन जाओ लोग अपना सवाल हल करने के लिए तुम्हें ढूँढना शुरु कर देंगे और तुम्हारे पीछे पीछे लगे रहेंगे । सवालों का कभी अंत नहीं होता लेकिन हजार सवाल पर एक जवाब ही भारी पड़ जाता है और सभी को खामोश भी कर देता है ।