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मंगलवार, 3 नवंबर 2020

हमने तो ये समझा था

दिल तोड़ के जाना था तो आये ही नहीं होते ।
मुह मोड़ के जाना था तो आये ही नहीं होते ।।

राहें हैं बहुत उल्झी मंजिल का निशां गुम है ।
कश्ती है तलातुम में साहिल का निशान गुम है ।।
यूं छोड़ा के जाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था .............................।।

जो प्यार के राही हैं दुनियां से नहीं डरते ।
अंजाम हो जैसा भी परवाह नहीं करते।। 
गर ख़ौफे़ जमाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था ...........................।।

हमने तो ये समझा था तुम फूल बिछाओगे ।
हर हाल में हर वादा तुम अपना निभाओगे ।।
कांटा ही चुभाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था ..........................।।

जावेद की ये आदत है हर हाल में खुश रहना ।
हंस हंस के ज़माने का हर जुल्मों सितम सहना ।।
मुझको ही रुलाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था ...............................।।

शनिवार, 15 जून 2019

बहुत गहरी उदासी है

बहुत गहरी उदासी है   ।
मुहब्बत आज प्यासी है ।।
मिले थे फूल जो ताज़ा   ।
वो बिस्तर आज बासी है ।।
बहोत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक वक्त साथ का        ।
एक वक्त याद का        ।।
सिमट रही है शाम भी   ।
उल्झन अच्छी-खासी है ।।
बहुत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,

वो ऐसी रात गुजारी है    ।
कि जैसे उम्र गुजरी है    ।।
जो उतरी रूह में खुशबू  ।
अभी सांसों में जरा सी है ।।
बहुत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,

कोई ख्वाहिश न बाकी थी ।
अभी तो रात आधी थी    ।।
कि जैसे फूल पे शबनम    ।
वो मुझपर बे लेबासी है     ।।
बहुत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक पंखुडी गुलाब की  ।
एक पंखुडी जनाब की  ।।
होश में तब हम कहाँ थे ।
बिछड़ना लगती फांसी है ।।
बहोत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,

रविवार, 2 दिसंबर 2018

अंदर से वो कांप रहा था

अंदर से वो कांप रहा था ।
राम नाम को जाप रहा था ।।
पड जाए ना गांड पे डंडा ।
हालत ऐसी भांप रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था

बहरुपियों का दादा था ।
सौ परसेंट नखादा था ।।
चिकनी बातों में उल्झा कर ।
रस्ता अपना नाप रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था

समाज को उसने मारा लात ।
रिश्तों में करता था घात ।।
मित्र का मतलब वो क्या जाने ।
कुत्तों जैसे हांफ रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था

जिसमें थी सारी मक्कारी ।
उसी से करता था वो यारी ।।
रुप बदलना बात बदलना ।
इसमें सबसे टाप रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था
                       
                   जावेद गोरखपुरी
                 ............................

शनिवार, 10 नवंबर 2018

आदमी गरीब था

संकोची था शर्मीला था  ।
किसी से कुछ नहीं कहता था ।।
भूखे पेट ही मजदूरी  ।
सारा दिन वो करता था ।।
क्यों की आदमी गरीब था
राम राम और साहब सलाम ।
सुबह से हो जाती थी शाम ।।
भूख से जब वह गिर जाता था ।
बेवडा कहकर कर देते बदनाम ।।
क्यों की आदमी गरीब था
बच्चो से बूढ़े तक को ।
सबको देता है सम्मान ।।
जीवन के हर मोड़ पर ।
सिर्फ मिला उसको अपमान ।।
क्यों की आदमी गरीब था
बड़े आदमी लगते थे ।
लंबी चौड़ी फेंकते थे ।।
इसकी सच्चाइ को सुनकर ।
झूठा कहकर हंसते थे ।।
क्यों की आदमी गरीब था
हाथ कटे तो गोबर बाधो ।
पेट के लिए गोबर्धन छानो ।।
टेटनस की सुई कौन लगवाता ।
होटल मे खाना कौन खिलाता ।।
क्यों की आदमी गरीब था