hello my dear friends. mai javed ahmed khan [ javed gorakhpuri ] novelist, song / gazal / scriptwriter. mare is blog me aapka dil se swaagat hai.
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मंगलवार, 3 नवंबर 2020
हमने तो ये समझा था
शनिवार, 15 जून 2019
बहुत गहरी उदासी है
बहुत गहरी उदासी है ।
मुहब्बत आज प्यासी है ।।
मिले थे फूल जो ताज़ा ।
वो बिस्तर आज बासी है ।।
बहोत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक वक्त साथ का ।
एक वक्त याद का ।।
सिमट रही है शाम भी ।
उल्झन अच्छी-खासी है ।।
बहुत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,
वो ऐसी रात गुजारी है ।
कि जैसे उम्र गुजरी है ।।
जो उतरी रूह में खुशबू ।
अभी सांसों में जरा सी है ।।
बहुत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई ख्वाहिश न बाकी थी ।
अभी तो रात आधी थी ।।
कि जैसे फूल पे शबनम ।
वो मुझपर बे लेबासी है ।।
बहुत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक पंखुडी गुलाब की ।
एक पंखुडी जनाब की ।।
होश में तब हम कहाँ थे ।
बिछड़ना लगती फांसी है ।।
बहोत गहरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रविवार, 2 दिसंबर 2018
अंदर से वो कांप रहा था
अंदर से वो कांप रहा था ।
राम नाम को जाप रहा था ।।
पड जाए ना गांड पे डंडा ।
हालत ऐसी भांप रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था
बहरुपियों का दादा था ।
सौ परसेंट नखादा था ।।
चिकनी बातों में उल्झा कर ।
रस्ता अपना नाप रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था
समाज को उसने मारा लात ।
रिश्तों में करता था घात ।।
मित्र का मतलब वो क्या जाने ।
कुत्तों जैसे हांफ रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था
जिसमें थी सारी मक्कारी ।
उसी से करता था वो यारी ।।
रुप बदलना बात बदलना ।
इसमें सबसे टाप रहा था ।।
अंदर से वो कांप रहा था
जावेद गोरखपुरी
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शनिवार, 10 नवंबर 2018
आदमी गरीब था
संकोची था शर्मीला था ।
किसी से कुछ नहीं कहता था ।।
भूखे पेट ही मजदूरी ।
सारा दिन वो करता था ।।
क्यों की आदमी गरीब था
राम राम और साहब सलाम ।
सुबह से हो जाती थी शाम ।।
भूख से जब वह गिर जाता था ।
बेवडा कहकर कर देते बदनाम ।।
क्यों की आदमी गरीब था
बच्चो से बूढ़े तक को ।
सबको देता है सम्मान ।।
जीवन के हर मोड़ पर ।
सिर्फ मिला उसको अपमान ।।
क्यों की आदमी गरीब था
बड़े आदमी लगते थे ।
लंबी चौड़ी फेंकते थे ।।
इसकी सच्चाइ को सुनकर ।
झूठा कहकर हंसते थे ।।
क्यों की आदमी गरीब था
हाथ कटे तो गोबर बाधो ।
पेट के लिए गोबर्धन छानो ।।
टेटनस की सुई कौन लगवाता ।
होटल मे खाना कौन खिलाता ।।
क्यों की आदमी गरीब था