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शनिवार, 20 अगस्त 2022

जिसकी जितनी किस्मत थी

जिसकी जितनी किस्मत थी ।
उतना उसका हिस्सा आया ।।

किसी को ज़रुरत से कम आया ।
किसी को जरुरत से ज्यादा आया ।।

किसी को गुर्बते रुसवाई आया ।
किसी को दौलतें जागीर आया ।।

किसी की आंखों में नीर आया ।
किसी के हाथों में खीर आया ।।

मुझे सब्र था तो राहे सूलूक में ।
मेरे हिस्से में मेरा पीर आया ।।

जावेद उन सब को अब भूल जा ।
तू नज़र में जिसके हक़ीर आया ।।

शब्दार्थ - 
हक़ीर = छोटा , तुच्छ , नीच , गिरा हुआ इत्यादि ।

राहे सूलूक = ग़रीब , दुखियारों की मदद करना ,
                  ईश्वर की तलाश , आत्मा को     परमात्मा     
                  में लीन करना आदि इत्यादि ।
                  
पीर = कामिल मुर्शीद , संत , पहुंचे हुए फ़कीर , 
          औलिया अल्लाह , सच्चे गुरु आदि इत्यादि 
          
नीर = पानी , आंखों से संबंध होने पर आंसू ।

खीर = विषेश प्रकार का स्वादिष्ट व्यंजन ।

गु़र्बत = ग़रीबी , गुर्बते = जरुरत से ज्यादा ग़रीब ।

रुसवाई = हंसी का पात्र बनना , लोगों के द्वारा
               मजाक उड़ाया जाना आदि इत्यादि ।
               
दौलतें जागीर = बे शुमार दौलत , इलाके का
                       मालिक , जरुरत से ज्यादा धन
                       का होना अति सम्मानित सम्मान
                       में लोगों का सर झुक जाना ।                                           

सोमवार, 17 मई 2021

आग को आग लिक्खूं

आग को आग लिक्खूं पानी को पानी लिक्खूं  ।
मैं की शायर हूं तो क्यूं  झूठी कहानी  लिक्खूं ।।

जिन्को सुन्ते ही बुझ उठते हैं मुहब्बत के चिराग  ।
क्या   जरुरत   है   वही   बात   पुरानी  लिक्खूं ।।

हज़ारों शक्ल में देखा है रात दिन तुझको ।
जिंदगी बोल तेरे कितने  मआनी  लिक्खूं ।।

रंग सब आप  पे  सजते  हैं  पहन लें जो भी ।
सब्ज या लाल लिक्खूं ज़र्द या धानीं लिक्खूं ।।

मेरा  दावा  है  मिला  है  न  मिलेगा  " जावेद " ।
कौन है जिसको की मैं आप का सानी लिक्खूं  ।।

शुक्रवार, 14 मई 2021

तेरा ग़म पहले

ईद का जश्न मनाऊं या तेरा ग़म पहले ।
कश्म कश का न था ऐसा कभी आलम पहले ।।

खुश्क पत्तों को जला देती है शोलों की लपट ।
शब्ज पत्तों को भिगो देती है शबनम पहले ।।

कत्रये आब से जल जाएंगे सावन में सजर ।
मैंने देखा न था ऐसा कभी मौसम पहले ।।

मुझ पे थीं जिसकी इनायत बहुत कम पहले ।
आंख उस शोख की हो जाती है अब नम पहले ।।

ज़ख्म भी देने का अंदाज़ नया है जावेद ।
जा ब जा जिस्म पे रख देता है मरहम पहले ।।

सोमवार, 1 मार्च 2021

मुहब्बत में या किसी दुश्वारी में

बेबसी में या किसी लाचारी में ।
मुहब्बत में या किसी दुश्वारी में ।।
कुछ तो है , जो साथ लाई हूं ।
आज खुद चल के पास आई हूं ।।
अब न छोडुंगी मैं कभी तुमको ।
आज दिल से ये कसम खाई हूं ।।
जो बीत गई है उसे बीत जाने दो ।
नई सुबह नई किरन साथ लाई हूं ।।
अब अंधेरे का कोई ग़म मत करना ।
उजाला बन कर तुम पर मैं छाई हूं ।।
दिल को शीशे में मत ढालना जावेद ।
मैंने अक्सर इसे टूटते हुए ही पाई हूं ।।

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

कुछ भी हैरत नहीं है दुनियां में

कौन सी चीज खो दिया तुमने ।
आज़ बर्बस ही रो दिया तुमने ।।

चुभ रहा है तुम्हें , आज जो कांटा ।
उस को पहले ही , बो दिया तुमने ।।

कुछ भी हैरत नहीं है दुनियां में ।
मिल रहा है वही जो दिया तुमने ।।

अब चुप-चाप देखते सहते जाओ ।
दुखती रग को जो टो दिया तुमने ।।

वो तो हंसा करता था हर लोगों पर जावेद ।
आज क्यूं मुझसे मिलते ही रो दिया तुमने ।।

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

वक़्त ऐसा भी आने वाला है

रब ने उसको अजीब ढाला है ।
सामने उसके  चांद  काला  है ।।

जो भी देखे वो पूजना चाहे ।
रुप उसका बड़ा निराला है ।।

काट कर मैंने सख्त चट्टानें ।
रास्ता बीच से निकाला है ।।

हक़ भी जीने का छींन लेंगे लोग ।
वक़्त  ऐसा  भी आने  वाला  है ।।

चैन और नींद उड़ गई जावेद ।
रोग  कैसा  ये  हमने पाला है ।।

सोमवार, 21 दिसंबर 2020

अब बहोत फासले हैं हमारे तुम्हारे

कहां अब मुहब्बत कहां वो भाईचारे ।
अब बहोत फासले हैं हमारे , तुम्हारे ।।

कभी वक़्त था , जब तुम्हीं थे हमारे ।
चले थे हम इन्हीं उंगलियों के सहारे ।।

सितारों में क्या डूबना, खोजना ।
दुनिया में अभी बहोत हैं नज़ारे ।।

गांव को , शहर को , लोग लेते हैं गोद ।
क्यूं ?  सड़क के किनारे पड़े हैं बेचारे ।।

उन्हें क्या खबर जिनकी जन्नत यहीं  है ।
नज़र बन्द है सिर्फ तुम्हारे या की हमारे ।।

जावेद मेरे पास भी है रौशन सा चांद ।
उसी से चम- चमाते हैं लाखों सितारे ।।

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है

वक्त ने तोड़ दिया हालात ने भी जकड़ा है ।
ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है ।।

समझ चुका है कि अब मौत ही सजा है मेरी ।
इससे बचने की कोई तरक़ीब लिए अकड़ा है ।।

चलेगी ज़ुबान न आवाज़ गले से निकलेंगी ।
वक़्त इस दुनिया में सबसे ज्यादा तगड़ा है ।।

अजीब लोग हैं यहां सरेआम मुकर जाते हैं ।
ये जाल बुनने वाले आठ पैर के मकडा है ।।

समझ रहे हो तो सब्र कर के जीलेना जावेद ।
यहां सब पतलब परस्ती का सारा झगड़ा है ।।