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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

मेरी मुहब्बत की इन्तहा

ये एक अजीब विडंबना है या कि मेरी मुहब्बत की इन्तहा ।
अपने छोटे छोटे बच्चे अक्सर छोटे छोटे भाई नज़र आते हैं ।
मुहब्बत तो दोनों से बराबर ही है लेकिन जब यादाश्त कमजोर पड़ने लगती है , तो उसी बड़े , छोटे भाई का नाम मुंह से निकल पड़ता है । बचपन की यादें मरते दम तक नहीं जाती , मगर आज तक नहीं समझ पाया कि सब कुछ कैसे भूल कर किनारा कर लेते हैं लोग ।
जिस भाई ने अपनी उंगली पकड़ाकर चलना सिखाया था , और जिस भाई ने मेरी ऊंगली पकड़ कर चलना सीखा था जब दोनों की उंगलियां हमेशा के लिए छूट जाती हैं , तो मेरे जैसे एहसासमंद लोगों का , सिर्फ़ खाली जिस्म रह जाता है , मगर उसमें कोई जान नहीं रहती । तन्हाई , उदासी और खामोशी के काले बादल छा जाते हैं ।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

इससे ग़लत फहमियां बढ़ने लगती हैं

हर समस्याओं का समाधान है मुलाक़ात । और मुलाकात में जरुरी है उन सभी पहलुओं पर बात , जिनके कारण समस्याएं उत्पन्न हुई हैं ।
बहाने बना कर दूरी बनाना , इससे ग़लत फहमियां बढ़ने लगती हैं । जिससे शक मज़बूत होता चला जाता है ।

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

एक दिन इस दुनियां को छोड़ना तो है ही

बहुत अच्छी दुनिया है । 
बहुत सारे स्वाद हैं । 
बहुत तरह के लोग हैं । 
बहुत तरह के आनन्द हैं । 
बहुत सारे सपने हैं। 
बहुत सारी ख्वाहिशें हैं । 
बहुत ही आकर्षक और आस्चर्य जनक भूल भुलैया है । दुःख है ,
सुख है , 
हंसना भी , 
रोना भी , 
अपने भी हैं । 
अपनत्व भी है । 
और प्रेम भी है । 
बचपन भी है । 
लड़कपन भी है । 
जवानी भी है । 
बुढ़ापा भी है । 
यहां स्वर्ग भी है । 
यहां नर्क भी है । 
सब कुछ तो है । 
झूठे को सच्चा भी किया जाता है 
और सच्चे को झूठा भी किया जाता है । 
सिर्फ एक सच्चाई है , 
जिसे कभी कोई झुठला न सका 
और न तो कोई झुठला पाएगा , 
वो है मौत । 
सब कुछ होने के बाद भी अमरत्व यहां नहीं है । 
कोई अमर नहीं रह सकता , 
आखिर मरना तो है ही । 
एक दिन इस दुनियां को छोड़ना तो है ही , 
लेकिन उस घड़ी , 
उस मुकाम,
और  उस कारण को भी कोई नहीं जानता । 
जिस जगह , 
जिस समय , 
जिस कारण से मरना है । 
यह सोंच कर सारी आशाएं निराशा में बदल जाती हैं । 
सारी ख्वाहिशें खत्म सी लगती हैं । 
सारी इच्छाएं कमजोर पड़ जाती हैं । 
दुनिया खाली खाली और वीरान सी लगने लगती है । 
सारे सुर संगीत रोने पिटने जैसी सुनाई पड़ने लगती है । 
मन को बहलाने या वक़्त को काटने का कोई रास्ता नहीं रहता लेकिन स्वयं से मर भी नहीं सकते , 
इस लिए उसी में आ कर डूबना और खोना पड़ता है 
जिसमें पुरी दुनियां डूबी और खोई है , 
लेकिन अपने ईमान और अपनी सच्चाई को बचाते हुए ।

मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

कौन से संत, महात्मा, ओझा, सोखा और गुरु को ढूंढ रहे हो

कौन से संत , महात्मा , ओझा , सोखा और गुरु को ढूंढ रहे हो ? कौन से औलिया , फ़कीर और पीर को ढूंढ रहे हो ?
जिसके माध्यम से इस दुनियां में आप पैदा हुए हैं , उस से बड़ा औलिया , फ़कीर और पीर दूसरा और कौंन हो सकता है । ( आस्था और विश्वास ) मुत्तक़ी और परहेज़गार पहले इनके बनो चाहे ये ज़िंदा हों या पर्दा कर गये हों , क्यों कि जब मौत आती है , तो पहले यही लोग आते हैं , और अगर ये लोग ज़िंदा हैं , तो खानदान के बुजुर्ग लोग आते हैं । क्यों नहीं कोई औलिया , फ़कीर या पीर आता है ? । मरते वक्त लोग इन लोगों का नाम नहीं लेते लेकिन 90% लोगों की जुबान से यही सुना जाता है कि लोग अपने ही लोगों का नाम बताते हैं , कि वो मुझे अपने साथ ले जाने आये हैं ।

सोमवार, 21 दिसंबर 2020

अब बहोत फासले हैं हमारे तुम्हारे

कहां अब मुहब्बत कहां वो भाईचारे ।
अब बहोत फासले हैं हमारे , तुम्हारे ।।

कभी वक़्त था , जब तुम्हीं थे हमारे ।
चले थे हम इन्हीं उंगलियों के सहारे ।।

सितारों में क्या डूबना, खोजना ।
दुनिया में अभी बहोत हैं नज़ारे ।।

गांव को , शहर को , लोग लेते हैं गोद ।
क्यूं ?  सड़क के किनारे पड़े हैं बेचारे ।।

उन्हें क्या खबर जिनकी जन्नत यहीं  है ।
नज़र बन्द है सिर्फ तुम्हारे या की हमारे ।।

जावेद मेरे पास भी है रौशन सा चांद ।
उसी से चम- चमाते हैं लाखों सितारे ।।

रविवार, 20 दिसंबर 2020

आप के बाप की भी इंसल्ट कर सकता है

जो आप को अपना समझता है , वो आप की जिंदगी से जुड़ी हुई हर चीज़ को अपना समझता है । जो आप को अपना नहीं समझता , वो आप की इंसल्ट क्या आप के बाप की भी इंसल्ट कर सकता है ।

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है

वक्त ने तोड़ दिया हालात ने भी जकड़ा है ।
ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है ।।

समझ चुका है कि अब मौत ही सजा है मेरी ।
इससे बचने की कोई तरक़ीब लिए अकड़ा है ।।

चलेगी ज़ुबान न आवाज़ गले से निकलेंगी ।
वक़्त इस दुनिया में सबसे ज्यादा तगड़ा है ।।

अजीब लोग हैं यहां सरेआम मुकर जाते हैं ।
ये जाल बुनने वाले आठ पैर के मकडा है ।।

समझ रहे हो तो सब्र कर के जीलेना जावेद ।
यहां सब पतलब परस्ती का सारा झगड़ा है ।।

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

इसका भुगतान तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा

जब बादशाहों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
जब नवाबों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
जब अंग्रेजों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
आज लोकतंत्र है । आज किसी बादशाह या नवाब की हुकूमत नहीं है । तो क्या आज देश में गद्दार नहीं हैं ?
आज तो पहले के उन दौर से ज्यादा देश में गद्दार पैदा हो गये हैं ।
1- देश में भाईचारा को खंडित करने वाला कौन है ?
2- देश में जात , धर्म , और मजहबों को बांटने वाला कौंन है ?
3- देश में देश की सही ख़बर न देने वाला कौंन ?
4- देश में जनता के बीच भेदभाव पैदा करने वाला कौंन है ?
इन सवालों के जवाब को पूरा देश जानता है । ऐसे  लोगों को देश का गद्दार न कहें तो क्या देश भक्त कहा जाएगा ?
एक मकान को बनाने के लिए बहुत सारे लोगों और बहुत सारे मटेरियल्स की जरूरत पड़ती है ठीक वैसे ही एक देश को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए सभी देशवासियों की आवश्यकता होती है । सभी का अपने अपने स्तर से योगदान होता है । इसमें कहीं कोई धार्मिक भेदभाव नहीं होते ।
किसी भी वर्ग , समुदाय या धर्म को ग़लत नजरिए से न देखा जाए और न तो उनको विशेष रूप से एकिकृत कर के गन्दे ढंग से राजनीत की जाय । सबसे पहले दोषी तो वही लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए अपने ही देश में अपने ही देश वासियों को जात पात के रुप में उकसाया और दूसरे जाति के लोगों के प्रति नफ़रत की आग बोना शुरू किया , वो भी ऐसा करने के लिए पार्टी का लाइसेंस तक बनवा डाले हैं ।
क्या संविधान में ऐसा कोई नीयम लिखा है कि हर धर्म के लोग अपनी अपनी पार्टी बनायें ?
ऐसी परंपरा शुरू करने वाले लोगों को तो आजीवन कारावास दे देना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसा करने के लिए कोई सोंच भी न सके नफ़रत होती है मुझे ऐसे लोगों से जो लोग धर्मों और जात पात की राजनीत करते हैं ।
अगर मेरी हुकूमत होती तो मैं उनके ऊपर भी राशुका लगा देता जो समाज में कहीं भी किसी से भी जात का नाम ले लेते या चर्चा करते हुए पाये जाते ।
देश आज़ादी के बाद से पुर्वजों ने जो भाईचारा क़ायम कर के चलते रहे हैं उसे पूरी तरह से तो नहीं तोड़ पाये हैं लेकिन जितना टूटा है उसका अंजाम आप के आंखों के सामने है ।
वह दिन दूर नहीं जब हर एक व्यक्ति को महसूस होगा कि उन्माद या बहकावे में आकर मैंने ग़लत किया है ।
हम जिस परिवेश और परिस्थितियों में जीते हैं उसमें सभी वर्ग , समुदाय के लोगों से आपसी भाईचारे का संबंध होता है 
जब हमारे पुर्वजों ने नहीं छोड़ा तो हम किसी के बहकावे या उन्मादी बातों में क्यों उल्झें । ये अलग बात है कि आज जो नफ़रत में चूर है लेकिन जिंदगी के कुछ ऐसे मोड़ भी आते हैं
जहां हमें सबके साथ की आवश्यकता होती है । इस बात का हमेशा ध्यान रखना कि आने वाली पीढ़ी तुम्हारे नफ़रत की खोखली जड़ को जिस दिन समझ लेगी उस दिन तुम संसार के सबसे बड़े पागल और देश द्रोही की नज़र से देखे जाओगे वो भी अपने ही लोगों के बीच चाहे वो किसी भी धर्म का हो , शिकारी अपना शिकार कर के निकल जाएगा लेकिन उसका भुगतान तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा ।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

देश से देशवासियों की आखरी लड़ाई

किसान जो लड़ाई लड़ रहे हैं । यही देश से देशवासियों की आखरी लड़ाई है । पुरे भारत वासियों की सिम्पैथी किसानों के साथ जुड़ी हुई है । अब इसी में फैसला हो जाएगा कि     " जय "  किसके साथ लगाना है और किसके साथ जोड़ कर बोलना है , जय जवान रहेगा  , जय बिजनेसमैन होगा या जय किसान रहेगा । अन्नदाता की औकात क्य है ? अन्नदाता का सम्मान कितना है ? इनके लिए कितना किया जाता है ? और अन्नदाता को देश कब कितना और क्या देता है ये भी किसी से छुपा नहीं है । किसान बिना कर्ज लिए भी आत्महत्या करता है और छोटे छोटे कर्ज लेकर भी मरता है और सारी जिंदगी नर्क से भी बदतर गुजारता है लेकिन उन बिजनेसमैनों का क्य जो हज़ारों करोड़ कर्ज लेकर विदेशों में अपनी ज़िंदगी स्वर्ग की तरह काटते हैं ।

रविवार, 13 दिसंबर 2020

किसान अपने उगाये हुए सामानों के मुल्य का निर्धारण खुद करें

बहुत सारी चीज़ें ऐसी हैं जिसके मुल्य का निर्धारण गवर्नमेंट ने नहीं बल्कि लोगों ने किया है । होल सेल में भी चोरी और कालाबाजारी होती है । फुटकर रेट में भी चोरी और कालाबाजारी होती है । वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मशीन और शेर तराज़ू में भी घपलेबाजी शामिल है ।
कहीं से कुछ भी लेंगे तो पैसा तो आप को पूरा देना पड़ेगा जिसमें पच्चीस पैसे भी कम नहीं लेगा लेकिन तौल में आप को सामान पुरा नहीं मिलेगा ।
यहां तक कि डब्बा बन्द सामान एवं पैकिंग में भी पूरा वजन नहीं होता । पच्चीस पैसा तो अब बाजार में नहीं चलता , पचास पैसा भी गायब है । एक रुपये का छोटा वाला सिक्का भी कोई नहीं लेता , कोई भी सिक्का हो अब बैंक वाले भी नहीं लेते ।
बहुत सारे बिजनेस दस , पंद्रह ,और पच्चीस पैसे के प्राफिट पर निर्भर होता है ।
जिस जिस चीज का भी गवर्नमेंट ने मुल्य का निर्धारण किया है । उसमें होल सेलर को ईमानदारी से पालन करना चाहिए लेकिन ये लोग भी कीमत बढ़ाकर लेते हैं । अब आप सोंचे कि फुटकर विक्रेता क्या करते होंगे । फुटकर वाले तो अपनी मनमानी करते हैं । जो चाहें रेट लगायें ये उनकी मर्जी ।
मार्केट में अगर सौ दुकान है तो पक्की और प्रिंटेड बिल देने वाले सिर्फ एक या दो लोग ही मिलेंगे बाकी निन्यानबे टैक्स की चोरी करते हैं या टैक्स फ्री हैं ? शायद इसी लिए पक्की बिल नहीं देते ।
मार्केट में किसी भी चीज का मीट हो उसके मुल्य का निर्धारण कौंन करता है ?
मार्केट में कोई भी शब्जी हो उसके फुटकर विक्रेता के मुल्य का निर्धारण कौंन करता है ?
जब फुटकर विक्रेता मुल्य का निर्धारण स्वयं करते हैं तो एक किसान अपने द्वारा उपजाये हुए अन्न की कीमत को क्यों नहीं निर्धारित कर सकता , दलहन फुटकर विक्रेता के वहां पंचानबे रुपये से लेकर एक सौ तीस रुपये तक है ।
शब्जी चालिस रुपये से लगाये अस्सी रुपये तक है ।
आप अगर जिम्मेदार व्यक्ति हैं तो आप को सभी चीजों के कीमतों का पता है । अब आप बताएं कि अगर आप के पास रोटी और चावल नहीं है तो शब्जी और मीट किस काम के अगर आप मार्केट में जाएंगे तो सबसे सस्ता आप को आटा और चावल ही मिलेगा इस लिए मैं किसानों से यही कहना चाहूंगा कि वो अपने अनाज की कीमत के रेट को भी स्वयं निर्धारित कर लें जैसे गेहूं सौ रुपया किलो कर दें , चावल ,एक सौ पच्चीस , आटा एक सौ बीस इसी तरह जितनी भी चिजें उगाते हैं सभी चीजों के मुल्य का निर्धारण खुद ही करें । जिसे आवश्यकता होगी वो खरीदेगा इसमें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है । जब आप उगाएंगे तभी तो लोग पाएंगे , कोई जबरदस्ती नहीं ले सकता आप अपनी मेहनत और क़ीमत को पहचानें ।
जबतक आप खुद रेट का निर्धारण नहीं करेंगे तब तक कोई करने वाला नहीं है । जब बड़े बड़े बिजनेसमैन आप से सस्ते रेट पर लेकर स्टाक करेंगे तो उनकी मर्जी पर निर्भर होगा कि वो किस रेट पर बेचेंगे या कोई प्रोडेक्ट तैयार करेंगे ये उनकी मर्जी पर है ।