जिंदगी भर तो सितम किया उसने ।
जुर्म कब अपन कम किया उसने ।।
चार दिन की मिली हुकूमत क्या ।
नाक में सबके दम किया उसने ।।
कुछ न कुछ हादसे हुए अक्सर ।
जब भी मुझपे करम किया उसने ।।
पेट अब तक भरा नहीं उसका ।
सबका हिस्सा हजम किया उसने ।।
ऊंची दहलीज जिस जगह देखी ।
सिर वहीं अपना खम किया उसने ।।
रो पड़े दर्द से फरिश्ते भी ।
मां की आंखों को नम किया उसने ।।
फिक्र अपनी लगी रही हर दम ।
कब जमाने का गम किया उसने ।।
रह गये सब उलझ के आपस में ।
जावेद ऐसा पैदा करम किया उसने ।।
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