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गुरुवार, 25 सितंबर 2025

वक्त के तूफान

मुझे उस पेड़ से बहुत मोहब्बत थी ।
क्यों कि उस पेड़ को मैंने लगाया था ।
उसकी हर डालें मेरे हाथ पैर जैसे लगते थे ।
लेकिन वक्त के तूफान ने कइ डाल तोड़ दीं ।
मुझ पर बेबसी और खामोशी सी छा गई ।
वक्त के आए हुए तूफान का असर ,
सभी को झेलना पड़ता है ।

लेकिन कुछ लोग तो पेड़ को जड़ से काट देते हैं ।
जब कोई पेड़ कटता है , तो ऐसा लगता है कि ,
पेड़ को नहीं मेरे , जिस्म को काटा जा रहा है ।
इस लिए मैं सिर्फ इतना ही कहुंगा , कि -
पेड़ को काटने से पहले ,
कहीं कुछ पेड़ लगा दिया करो ।
यह तुमसे ज्यादा कुछ लेता नहीं है ।
ज़रुरत से ज्यादा , बहुत कुछ देता है ।
                                    " जावेद गोरखपुरी "

रविवार, 21 सितंबर 2025

पायेदार

अब न पाया है और 
अब न पायेदार है ।

देश का बच्चा, बच्चा 
सिर्फ , बकायेदार है ।।
    " जावेद गोरखपुरी "

शनिवार, 20 सितंबर 2025

जानवर

जानवरों ने आदमी को ,
जानवर नहीं बनाया है ।

आदमी ने आदमी को ,
जानवर बना दिया है ।।
    " जावेद गोरखपुरी "

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

लम्हें

इस दुनियां को क़ायम हुए ,
अनगिनत सदियां बीत गई हैं ।
इन अनगिनत सदियों में ,
अनगिनत खूबसूरत लम्हें बीते हैं ।

उन खूबसूरत लम्हों को 
जीने वाले आज नहीं हैं ।
वो खूबसूरत लम्हे इस दुनियां में 
आज भी कायम है ।
जो लोग अब इस दुनियां में नहीं है ।
वो अपने हिसाब से जी कर गए हैं ।
जो लोग आज हैं ।
वे लोग अपने हिसाब से जीते हैं ।

सबसे बड़ा सच तो यह है कि -
लम्हें अच्छे रहे या बुरे , 
जिन लम्हों में जिसको जितना जीना था ,
उतना ही जी पाया , आज तक इस दुनियां में 
जिंदा नहीं है । सिर्फ लम्हें जिंदा हैं ।
जो लोग आज हैं । उन्हें भी अच्छे बुरे लम्हों से 
गुजरते हुए इस दुनियां को छोड़कर जाना है ।
                                      " जावेद गोरखपुरी "

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

जन्मने और मरने

पेड़ जब सूखने लगता है ।
तब उसकी जड़ में ,
दुनियां के सारे ड्राई फ्रूट्स ,
पीस कर डालें जायं तब भी 
वो हरा - भरा नहीं हो सकता ।

इसी तरह इंसान जब बूढ़ा होने लगता है ।
तब दुनियां की कोई भी ताक़त ,
उसे फिर से जवान नहीं कर सकती है ।

दुनियां में हर चीज़ के जन्मने और मरने ।
बनने और बिगड़ने की एक प्रक्रिया है ।
जिसे कोई रोक नहीं सकता है ।
                          " जावेद गोरखपुरी "

सोमवार, 15 सितंबर 2025

बेशर्म किसने बनाया

जब तक इंसान गाली देना नहीं जानता है ।
तब-तक वह शर्मीला और संकोची होता है ।

जब वह लोगों से गालियां सुन - सुन कर ,
जानकार हो जाता है और खुद जब गालियां 
देना शुरु करता है । तब वही गालियां सुनाने 
वाले लोग उसे बेशर्म कहते हैं ।
                               " जावेद गोरखपुरी "

शनिवार, 13 सितंबर 2025

रईश और ज़मीदार

रईश और जमींदार -
खेती , बारी , दौलत और पुराने हवेली नुमा 
मकान से ही सिर्फ नहीं होते हैं ।

रईश और जमींदार का 
दिल , दिमाग़ , विचार , बातें और जेहन भी 
रईश और जमींदार होता है ।

इनका अगर सब कुछ लुट जाए तो भी 
दिल , दिमाग़ , विचार , बातें और ज़ेहन ,
मरते दम तक साथ रहता है ।

दौलत के घमंड में कभी 
रईश और जमींदार ,
बनने की कोशिश मत करना ।

रईश और जमींदार लोग ,
किसी के भी घर की ।
आधी रोटी खाकर या 
एक गिलास पानी पी कर या 
उठने , बैठने का तहज़ीब देख कर या 
मुंह से निकले हुए एक लाईन को सुन कर ,
यह अंदाजा लगा लेते हैं कि 
सामने वाले की औकात क्या है ।
                               " जावेद गोरखपुरी "


इस दौर में

इस दौर में ........ ।
अच्छाई करने में ।
" और "
भलाई करने में ।
दर्द और रुसवाईयां 
बहुत मिलती हैं ।

झूठ , फरेब में ।
" और "
मक्कारीयों में ...... ,
इज्जत और वाहवाही ,
बहुत मिलती है ।
              " जावेद गोरखपुरी "

गुरुवार, 11 सितंबर 2025

सब्र और खामोशी

जरुरी नहीं है कि हर सब्र का ,
और हर खामोशी का जवाब ,
तुम्हें देखने को मिलेगा ही ।

लेकिन !

लोगों के दिये हुए दर्द से ।
जिस खामोशी में ।
जिस सब्र में ।
तुम्हें आना पड़ा है ।
उसका जवाब तुम्हें देखने को ,
एक न एक दिन जरुर मिलेगा ।
               " जावेद गोरखपुरी "

बुधवार, 10 सितंबर 2025

वास्तविकता

दिमाग को ईश्वर संचालित करता है ।
इसमें तुम कुछ नहीं कर सकते हो ।

दिल को आत्मा संचालित करती है ।
इसमें आधा तुम्हारा बस चलता है ।
                     " जावेद गोरखपुरी "