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गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मोटिवेशन का मतलब क्या है ?

मोटिवेशन का मतलब क्या है ?
अपनी बातों से किसी को इतना उत्साहित कर देना कि वो हर बात मानने को तैयार हो जाए और अपनी पुरी उर्जा के साथ लग जाये। अगर इसको ठेठ और प्रचलित शब्द में कहा जाए तो इसे कहते हैं किसी को भी अपनी बातों में लपेट लेना और इतनी चालाकी से कि सामने वाले को यह जरा भी एहसास न हो कि उसे लपेटा जा रहा है ।
अपनी लच्छेदार बातों से उसके अंदर इतना उर्जा भर देना कि वो जरुरत से ज्यादा एनरजेटिक हो जाए ताकी न किसी कि बात सुने और न मानने को तैयार हो ।
मुझे बार बार यह एहसास होता है कि जितने भी मोटिवेश्नल स्पीकर हैं शायद वो प्रैक्टिकल में नहीं हैं ऐसी ऐसी बातें बोल जाते हैं कि जरा भी एहसासमंद आदमी हो तो उसे घृणा हो जाएगी उसे यह एहसास हो जाता है कि ये जरुरत से ज्यादा बोल रहा है जो दिल और दिमाग के बजाय सर के ऊपर से गुजर जाती है । यह स्पष्ट साबित हो जाता है कि ये आदमी यहां बैठे हजारों या सैकड़ों लोगों को लपेट रहा है ।
खैर वास्तविकता पर दिये गये वक्तव्य को सुन कर सोचा जा सकता है लेकिन जब लोग मोटिवेट करते वक़्त ओवर कान्फिडेन्स में चले जाते हैं तो उस वक़्त और भी ज्यादा तालियां लोगों के द्वारा मिलती है ।
मगर पता नहीं क्यूँ मुझे इन लोगों की बातों में कोई इंट्रेस्ट नहीं क्यों कि मैं जानता हूँ कि ये लोग लोगों को लपेटने के माहिर हैं और लोगों को लपेटने का दो चार लाख रुपये घंटा भी लेते हैं । सुना है कि अब तो इसकी ट्रेनिंग और कोर्स भी होने लगा है ।
जब कोई जमीन से उठ कर जिंदगी से संघर्ष करता हुआ किसी ऊंचे मुकाम को हासिल करता है फिर अपने संघर्षों और विचारों को बताते हुए जब कोई नयी राह दिखाता है तो मैं प्रभावित होता हूं और ऐसे लोगों कि कही हुई बातों के एक एक शब्दों में मैं डूब कर सोंचने पर मजबूर हो जाता हूँ क्यों कि ऐसे लोगों की बातों में हकीकत होती है जो लोगों को प्रेरित करती है ऐसे लोग न किसी के बातों में लपेटाते हैं और न ही किसी को लपेटते हैं प्रमाण के साथ हकीकत सामने लाकर रख देते हैं ।

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

हमने तो ये समझा था

दिल तोड़ के जाना था तो आये ही नहीं होते ।
मुह मोड़ के जाना था तो आये ही नहीं होते ।।

राहें हैं बहुत उल्झी मंजिल का निशां गुम है ।
कश्ती है तलातुम में साहिल का निशान गुम है ।।
यूं छोड़ा के जाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था .............................।।

जो प्यार के राही हैं दुनियां से नहीं डरते ।
अंजाम हो जैसा भी परवाह नहीं करते।। 
गर ख़ौफे़ जमाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था ...........................।।

हमने तो ये समझा था तुम फूल बिछाओगे ।
हर हाल में हर वादा तुम अपना निभाओगे ।।
कांटा ही चुभाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था ..........................।।

जावेद की ये आदत है हर हाल में खुश रहना ।
हंस हंस के ज़माने का हर जुल्मों सितम सहना ।।
मुझको ही रुलाना था तो आये ही नहीं होते ।
दिल तोड़ के जाना था ...............................।।

रविवार, 1 नवंबर 2020

मर्दानगी

मर्द को क्या पता अपनी मर्दानगी का, मर्द की मर्दानगी को औरत जानती है ।
जिस दिन औरत अपने औरतपन पर उतर जाएगी उस दिन से भारत में बलात्कार की घटना तो दूर बलात्कारी ढूढने से भी नहीं मिलेंगे,, बस इनके जागने की जरूरत है ।

शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

सोंचने पर मजबूर

इस दुनियां में ऐसे लोग भी आते हैं । जो सोंचने पर मजबूर कर देने वाले सनकी, दिवाने और जुनूनी हैं । जो अपनी चाहतों को पुरा करने के लिए अपनी जान भी दे देते हैं । और जान ले भी लेते हैं ।

जीतने का सिस्टम

पैसे से चुनाव जीतने का सिस्टम अलग होता है ।
फटी पाकेट वाले के जीतने का सिस्टम अलग होता है ।
इससे ज्यादा विस्तार में कहना मैं उचित नहीं समझता क्यों कि आप से बड़ा राजनीत का खिलाड़ी और कौन हो सकता है । अब घर जा कर फुर्सत से बैठो और यह सोचो कि आप कौन से सिस्टम से जीतना चाहते हैं ।

बचपन की यादें

बचपन की यादें नौजवानी में हंसाती हैं और नौजवानी की यादें बुढ़ापे में रुलाती हैं ।

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

चेन सिस्टम

रोटी , सब्जी , दाल , चावल ये चार चीजें आप को तीनों टाईम चाहिए चाहे आप झोंपड़ी में हों या महल में ।
ये कैसे मिलेंगी ?
और कहाँ से आती हैं ?
इसको स्वदिस्ट तरीके से तैयार करने के लिए आप को 
मसाले की जरूरत पड़ती है ।
मसाले कैसे और कहाँ से आएंगे ?
तीसरा मामला कपड़े का हे ।
चौथा मामला दवाई का है ।
पांचवां मामला शिक्षा का है ।
छठवाँ मामला रोजगार का है ।
सातवां मामला आलीशान बंगले का है। 
आठवां मामला उस बंगले में अपने सहूलियतों के हर सामान को जुटाने का है ।
ये सभी पैसों पर आधारित हैं ।
अब उपरोक्त सभी चीजों को हासिल करने के लिए आप को मोटा पैसा चाहिए ।
इसका रास्ता अगर आप खुद बनाते हैं तो आप अपने अनुसार निर्धारित समय पर सब हासिल कर सकते हैं ।
अगर किसी चेन सिस्टम का हिस्सा बन कर हासिल करना चाहते हैं तो सबसे पहले उसे सब हासिल होगा जिसने चेन सिस्टम को बनाया है । उसके बाद आप के सपने हासिल होंगे ।
पंचनबे परसेन्ट लोग चेन सिस्टम को बनाने वाले को उसके लछ्य से ज्यादा हासिल करवा देते हैं और जब अपना नम्बर आता है तो खुद टूट जाते हैं ।
या पुरा सिस्टम ही बंद हो जाता है ।
इससे बेहतर है कि आप जितनी मेहनत किसी और के लिए करने में अपने समय का नुकसान करते हैं उपर से इनकम के उम्मीद पर कर्जदार भी हो जाते हैं ।
उसी गुड सुत्र पर आप खुद के लिए लोगों को हासिल करें और प्राथमिक आवश्यकताओं से शुरू करें। 
जिसकी इन चेन सिस्टमों में लगे तमाम लोगों को जरुरत है। 

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

पैसे के लिए

पैसे के लिए जो तुमने कर ढाला काश तुम इसे समझ पाते ।
अगर जरा भी अपनों के बारे में सोचे होते तो तुम्हारे करनी पर आज मुझे शर्मिंदा नहीं होना पड़ता ।
तुम्हें मैं क्या समझु , मेरी समझ से बाहर होते जा रहे हो ।

बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

हर पल से अंजान

हर आदमी अपने ज़िन्दगी के बीते हुए दिनों के एक एक पल को जानता है ।
लेकिन जिंदगी में आने वाले दिन के एक एक पल से हर कोई अंजान है ।

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

आर्थिक आज़ादी

इस देश में मुर्खों और पागलों की कमी नहीं है ।
महान शायर गालिब के कथनानुसार चार पंक्तियां -
चूतियों की कमी नहीं गालिब ।
एक ढूढो हजार मिलते हैं ।।
नगद ढूढो तो उधार मिलते हैं ।
उधार ढूंढो तो बेशुमार मिलते हैं ।।
नेता गिरी एक ऐसा धंधा है । जहां ऐसे ही लोग बेशुमार मिलते हैं । क्यों कि इन चूतियों को नौकरी , तनख्वाह या कैरियर की जरूरत नहीं होती बस पद चाहिए ।
क्यों कि ये धन्धा सीधे देश से होता है । पार्टी को सत्ता में आने से या खुद चुनाव जीत लेने से देश में हिस्सेदारी मिल जाती है । और ये बात सभी नहीं जानते , बस इतना जानते हैं कि किस पार्टी का माला जपना है । किस पार्टी को नीचा दिखाना है और उसका विरोध करना है । उसकी कमियों को दिखा कर माइंड़ डाईवर्ट कर देना है और वो भी उन लोगों का जो राजनीत में इनट्रेस्ट नहीं रखते अपने कमाने खाने में व्यस्त रहते हैं ।
ऐसे ही लोगों को कुछ लालच दे कर इकट्ठा करना और 
धरना , प्रदर्शन और उपद्रव करना साथ में लाठी भी खाना और खिलवाना है । लेकिन पूरे प्रक्रिया में राष्ट्रिय लीडर नहीं होता सब यही बेशुमार वाले होते हैं ।
यकीन न हो तो कोई भी अनाप सनाप पार्टी बना लो सैकड़ों में तो तुरंत मिल जाएंगे फिर हजारों में और इसी तरह बढते हुए बेशुमार वाले कैटेगरी के लोग भर जाएंगे ।
यहां कोई क्वाईलिफिकेशन या डिगरी की जरूरत नहीं होती आत्म निर्भर बनने के लिए हर तरह की संपन्नता का होना जरुरी है । जो रोज कमाता है तब खाता है तो ऐसे लोग आत्म निर्भर कैसे बनेंगे ।
ऐसे लोगों की महामंडी आज भी गरम है । जिसे राजनीति के नाम से जाना जाता है । इसी मंडी में तुम्हें तुम्हारा सही अधिकार मिलेगा और बोलबाला भी ।
जो पार्टीयां बनी हैं उसे सब जानते हैं इससे हटकर अलग से एक पार्टी बनाओ और देश के साथ देश वासियों को भी एक अलग दिशा दो जिसमें सभी के पास समय की आजादी और आर्थिक आजादी दोनों हो ।