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सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

अपने और पराये

कहीं - कहीं पराये अपने हो जाते हैं ।
कहीं - कहीं अपने पराये हो जाते हैं ।।
परायों का अपना होना स्वाभाविक है ।

लेकिन जब अपने ही पराये हो जाएं ।
तो कैसा लगेगा ? दुःख तो तब होता है ।
जब इतना ही समझने में कभी-कभी 
उम्र निकल जाती है ।                      
                           " जावेद गोरखपुरी "

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

रिश्ते तोड़ दिए जाते हैं ।

रिश्ते खुद नहीं टूटते... । 
रिश्ते तोड़ दिए जाते हैं । 
वक्त और हालात के मुताबिक ।

रिश्ते खुद नहीं बनते... । 
रिश्ते बना लिए जाते हैं ।
वक्त और हालात के मुताबिक ।

वक्त किसी के बाप की ,
एकलौती जागीर नहीं है ।
वक्त चंद मिन्टों में..... , 
सब कुछ बदल कर 
रख देता है ।

तुम अपनी जिंदगी भर में ।
अपने बाथरूम के झरने में ।
जितना नहा कर भीगे होगे.. । 
तुम अपनी जिंदगी भर में ,
जितना बारिशों में भीगे होगे ।

उससे ज्यादा मैं..... , 
अपने कर्मों और अपने 
अनुभवों के पसीने से 
भीग चुका हूं ।
                 " जावेद गोरखपुरी "

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

फ़सल कोई और काटेगा

भारत देश में जो धार्मिक युद्ध चल रहा है ।
यह भय , भूख , बीमारी , ग़रीबी और 
बेरोज़गारी में ,
दिन प्रतिदिन स्प्रीट का काम करती जा रही है ।
गृह युद्ध पचास प्रतिशत क्रास कर चुका है ।
मरता क्या नहीं करता , वह दिन दूर नहीं जब 
गृह युद्ध अपने पूरे चरम सीमा पर पहुंच जाएगा ।

ऐसी परिस्थितियों में दो ही कार्य हो सकते हैं ।
या तो सार्वजनिक रुप से भारत में तख्तापलट ।
या तो संपूर्ण भारत पर दो से तीन धार्मिक ,
समुदायों का एक छत्र राज स्थापित हो जाएगा ।
परिस्थितियां और हालात तुम पैदा कर चुके हो ,
लेकिन फ़सल कोई और काटेगा ।
                                    " जावेद गोरखपुरी "
                                    

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

हम , तुम

किसी छोटे या बड़े लेख में , जब -
हम , तुम , मैं , आप , वो , उसने ।
जैसे शब्दों का प्रयोग होता है ।
तब यह शब्द कैरेक्टर के रुप में ,
किसी चीज़ को दर्शाने के लिए उपयोग होता है ।

जब इन्हीं शब्दों का उपयोग ,
व्यक्तिगत तौर पर किया जाता है ।
जैसे - 
पत्र लिखने में ।
मैसेज लिखने में ।
आपस में बात करने पर ।
तब यह शब्द कैरेक्टर से बदल कर ,
व्यक्तिगत हो जाता है ।
जो खुद पर लागू होने लगता है ।

इस बात को बहुत सारे लोग जानते हैं ।
लेकिन मुझे लिख कर इस लिए समझाना पड़ा ।
कि , कुछ लोग समाज में ऐसे भी हैं । 
जो किसी के लिखे हुए आर्टिकल को , 
उसी के ऊपर समझने लगते हैं ।
                                      " जावेद गोरखपुरी "

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

किताब की गणित

किताब की गणित में ।
" और "
मोहब्बत की गणित में ।
बहुत फासला होता है ।

किताब के गणित में ।
दो मेसे एक जाएगा ,
तो , एक बचेगा ।

मोहब्बत के गणित में ।
दो मेसे एक जाएगा ,
तो , कुछ नहीं बचेगा ।
सब कुछ ज़ीरो हो जाता है ।
          " जावेद गोरखपुरी "

गुरुवार, 25 सितंबर 2025

वक्त के तूफान

मुझे उस पेड़ से बहुत मोहब्बत थी ।
क्यों कि उस पेड़ को मैंने लगाया था ।
उसकी हर डालें मेरे हाथ पैर जैसे लगते थे ।
लेकिन वक्त के तूफान ने कइ डाल तोड़ दीं ।
मुझ पर बेबसी और खामोशी सी छा गई ।
वक्त के आए हुए तूफान का असर ,
सभी को झेलना पड़ता है ।

लेकिन कुछ लोग तो पेड़ को जड़ से काट देते हैं ।
जब कोई पेड़ कटता है , तो ऐसा लगता है कि ,
पेड़ को नहीं मेरे , जिस्म को काटा जा रहा है ।
इस लिए मैं सिर्फ इतना ही कहुंगा , कि -
पेड़ को काटने से पहले ,
कहीं कुछ पेड़ लगा दिया करो ।
यह तुमसे ज्यादा कुछ लेता नहीं है ।
ज़रुरत से ज्यादा , बहुत कुछ देता है ।
                                    " जावेद गोरखपुरी "

रविवार, 21 सितंबर 2025

पायेदार

अब न पाया है और 
अब न पायेदार है ।

देश का बच्चा, बच्चा 
सिर्फ , बकायेदार है ।।
    " जावेद गोरखपुरी "

शनिवार, 20 सितंबर 2025

जानवर

जानवरों ने आदमी को ,
जानवर नहीं बनाया है ।

आदमी ने आदमी को ,
जानवर बना दिया है ।।
    " जावेद गोरखपुरी "

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

लम्हें

इस दुनियां को क़ायम हुए ,
अनगिनत सदियां बीत गई हैं ।
इन अनगिनत सदियों में ,
अनगिनत खूबसूरत लम्हें बीते हैं ।

उन खूबसूरत लम्हों को 
जीने वाले आज नहीं हैं ।
वो खूबसूरत लम्हे इस दुनियां में 
आज भी कायम है ।
जो लोग अब इस दुनियां में नहीं है ।
वो अपने हिसाब से जी कर गए हैं ।
जो लोग आज हैं ।
वे लोग अपने हिसाब से जीते हैं ।

सबसे बड़ा सच तो यह है कि -
लम्हें अच्छे रहे या बुरे , 
जिन लम्हों में जिसको जितना जीना था ,
उतना ही जी पाया , आज तक इस दुनियां में 
जिंदा नहीं है । सिर्फ लम्हें जिंदा हैं ।
जो लोग आज हैं । उन्हें भी अच्छे बुरे लम्हों से 
गुजरते हुए इस दुनियां को छोड़कर जाना है ।
                                      " जावेद गोरखपुरी "

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

जन्मने और मरने

पेड़ जब सूखने लगता है ।
तब उसकी जड़ में ,
दुनियां के सारे ड्राई फ्रूट्स ,
पीस कर डालें जायं तब भी 
वो हरा - भरा नहीं हो सकता ।

इसी तरह इंसान जब बूढ़ा होने लगता है ।
तब दुनियां की कोई भी ताक़त ,
उसे फिर से जवान नहीं कर सकती है ।

दुनियां में हर चीज़ के जन्मने और मरने ।
बनने और बिगड़ने की एक प्रक्रिया है ।
जिसे कोई रोक नहीं सकता है ।
                          " जावेद गोरखपुरी "