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शनिवार, 6 अप्रैल 2024

कर्मों का फल

कुछ लोगों के जिंदगी में कभी-कभी ऐसे भी वक्त आते हैं कि न तो वह जीने के लायक रहते हैं और न तो खुद से मरने के लायक ।
खुद से सिर्फ अपने मरने की दुआ ही कर सकरते हैं , और करते भी हैं , कुछ लोग दुआ करवाते भी हैं ।

जितने भी लोग देखने वाले आते - जाते हैं । हालात के मुताबिक उन्हें भी उनके मरने की दुआ ही करनी पड़ती है ।
काश ऐसा समय किसी के भी जिंदगी में न आये तो समझो बहुत बड़ी खुशनसीबी है ‌ ।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि जिनके जिंदा रहने की दुआएं हर सुनने वाला करता है ।
कितने खुशनसीब होते हैं ऐसे लोग ।

दोनों परिस्थितियों में मालिक का करम है , या उनके कर्मों का फल । मैं कुछ कह नहीं सकता ।

सोमवार, 18 मार्च 2024

परिपक्वता

आदमी परिपक्व उम्र बढ़ जाने और बूढ़े हो जाने से ही नहीं होता बल्कि आदमी को परिपक्व उसके बुरे दिन ,

बुरी हालात और बुरा समय बनाता है ।


आज तक कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है कि जिसके अच्छे दिन , अच्छी हालात और अच्छे समय ने परिपक्वता प्रादान की हो ।


निष्कर्ष :--


परिपक्वता का कोई समय निर्धारित नहीं है ।

यह कभी भी किसी को भी किसी भी बुरी परिस्थितियों से प्राप्त हो सकती है ।

खुद से परिपक्वता साबित करना महामुर्खता है ।

परिपक्व लोग आप की बातों से ही एहसास कर लेते हैं कि आप कितने परिपक्व हैं ।

शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

सफलता की हकीकत क्या है ?

बिना परिश्रम से मिली हुई सफलता ,

या विरासत में मिली हुई सफलता का

कोई मोल नहीं होता ।

यह कभी मत भूलियेगा की मेहनत करने से

सफलता मिलती है  ।

सफलता हमेशा नसीब से मिलती है और नसीब 

दो प्रकार का होता है

1 - ग़लत तरीके से प्राप्त की गई सफलता

2 - विरासत में मिली हुई सफलता

नसीब में अगर परिश्रम कर के सफलता प्राप्त करना लिखा हुआ है , तो इस परिश्रम में मिले हुए हर कमेंट ,

हर दर्द , हर परेशानियां एक कहानी बन कर मरते दम तक याद रहतीं हैं । चाहे वो जितनी भी बड़ी सफलता क्यों न हो ।

शनिवार, 20 जनवरी 2024

समस्याओं का समाधान

( यह पुरा घटनाक्रम किसी विशेष व्यक्ति पर आधारित नहीं है । समाज में बढ़ रहे ओझा , सोखा और बाबाओं से प्रेरित होकर । समाज में बढ़ रहे झोला छाप डॉक्टर और समाज में बढ़ रहे छोटभैइये नेता जो अपनी पहुंच हर विभाग और हर पार्टी के मुखियाओं तक रखने की बात करते हैं । जिसे आए दिन सुना भी जाता है । यह चीजें समाज में बहुत गहराई तक व्याप्त हैं  , जिसमें हर कोई अपनी जिंदगी में एक बार जरुर फंसता है । यह मात्र एक काल्पनिक परन्तु विचारात्मक लेख है  ) । 


जो शारीरिक बीमारियों की समस्याओं का समाधान कर दे वही डॉक्टर है ।

जो जीवन में भरी मुश्किलों को आसान कर दे वही ईश्वर है ।

इस समाज में मुश्किलों को आसान कर देने वाले , छू मंतर वाले मदाड़ी तो बहुत हैं , लेकिन इनकी पहुंच का अंदाजा तब लगता है , जब आप इनकी गिरफ्त में अच्छी तरह से जकड़ जाते हैं । जब तक आप खुद इनको छोड़ कर न भागें तब तक ये आप को खुद छोड़ने वाले नहीं हैं ।


ऐसे ही हर समस्याओं यानी हर बीमारी को समाप्त कर देने वाले डॉक्टर भी बहुत हैं ।

हर कदम पर , हर गली में अपना जाल फैलाएं बैठे हैं ।

आप इनसे बच कर जाएंगे कहां ? 

आप को लुट जाना तो पड़ेगा ही ।

लुट जाने के बाद यानी पैसे से कमजोर हो जाने पर और रोग के गंभीर रुप ले लेने पर यही आप को असली और सही डाक्टर के पास जाने का सुझाव देगा अगर इनका किसी डॉक्टर से संपर्क नहीं है तो यह कह देगा कि अब आप इन्हें कहीं और दिखाएं यदि उसका किसी डॉक्टर से संपर्क है तो वह आप को एक पर्ची दे कर उस डाक्टर के पास भेज देगा और कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि खुद ही किसी दूसरे डाक्टर के पास भागना पड़ता है ।

अस्ली और सही डाक्टर तक पहुंचने के पहले आप के साथ क्या - क्या दुर्गति हो चुकी हैं । 

अब यह डाक्टर बताएगा ।

आप को पुरी तरह से क्योर ( सही ) होने में कितना टाइम लगेगा , वह तै करेगा ऐसी परिस्थितियों में एक सत्ता ऊपर भी है , जिसे ईश्वर कहते हैं । वो जिसे चाहे अपने पास बुला ले और जिसे चाहे पुनः स्वस्थ कर दें ।


समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं , जो सभी समस्याओं का समाधान करते हैं । ऐसे लोग आप को पहली मुलाकात में ही अपनी बातों से प्रभावित कर लेंगे अपना कांटेक्ट नंबर भी दे देंगे , नम्बर लेकर आप पूरी तरह से संतुष्ट भी हो जाएंगे  ।


जब आप की समस्याएं आप के सिर पर आकर खड़ी हो जाएंगी तब आप फोन करना शुरु करेंगे वे आप से मिलने का समय देंगे और आप की परिस्थिति ऐसी नहीं है कि आप ज्यादा इंतजार करें , लेकिन फिर भी आप को इंतजार करना पड़ता है ।

आप फोन पर फोन करते जा रहे हैं और वो आप को समय पर समय देता जा रहा है ।

बहुत रिक्वेस्ट करने पर वह आप से पांच मिनट के लिए मुलाकात कर लेगा लेकिन कोई काम हो या कहीं जाना हो तो वह कभी इन्कार नहीं करेगा बल्कि उस समय भी अपनी व्यस्तता जाहिर कर के आप से समय लेगा जिससे आप फिर एक बार संतुष्ट हो जाएंगे ।


ऐसे लोग अपने स्वार्थ के तहत ही किसी को समय देते हैं । आप के आवश्यकतानुसार समय मिल जाए यह मुमकिन नहीं , हां समय देंगे लेकिन उस समय जब आप से उनकी पाकेट गरम हो । जब आप से उनके दैनिक हर जरुरतें पूरी हों और आप बिना उनकी बातों का ऐतराज किए उनकी हर बात मानते जाएं , तो साथ बहुत लंबा चलेगा ।


एक समय ऐसा भी आएगा कि आप को खुद यह एहसास हो जाएगा कि मेरा समय अनर्गल ( वेस्ट ) बर्बाद हो रहा है । जहां काम 100% होना चाहिए , वहां 10% ही हो रहा है और अनर्गल ख़र्चे भी कई गुना ज्यादा हो रहे हैं ।

जब आप अपने काम , समय , और खर्च की तुलना करेंगे तो स्वयं ही इन सभी समस्याओं का समाधान करने वाले का साथ छोड़ देंगे ।


तब-तक आप एक समाजिक प्रोफेसर हो चुके होंगे , बहुत कम लोग ऐसे हैं जो निस्वार्थ भाव से आप से जुड़े हुए हैं और आप के हर अच्छी , बुरी परिस्थितियों में साथ खड़े रहते हैं ।

हर चीज़ की पहचान , हर चीज़ का ख्याल और हर चीज़ का एहसास होने में , जब आप खुद में झांक कर देखोगे तो यह जान जाओगे कि आधी जिंदगी गुज़र चुकी है ।


आप किसी को भरोसा मत दिजिए और न तो किसी से कोई वादा करिये , आप ऐसा काम करिए कि लोग खुद आप के ऊपर भरोसा करने लगें ।

अपनों का ख्याल करें । सभी को एक सुत्र में जोड़ने का प्रयास करें  । 

जीवन क्या है ? इसे समझें  । 

सुख एक अवसरवादी अवस्था या क्रियाकलाप मात्र हो सकता है , जो जीवन भर ( कांटिनिव ) लगातार एक ही तरह बना नहीं रहता ।

इस लिए अपने दुःखों में ही आनंदित रहने का प्रयास करें ।

मंगलवार, 9 जनवरी 2024

डर के आगे जीत है ( सब्र का फल )

नदी के इस पार भी बहुत सारे गांव थे । नदी के उस पार भी बहुत सारे गांव थे । नदी के इस पार सबसे पहला जो गांव था उसकी दूरी नदी से दो किलोमीटर की थी । नदी के उस पार जो सबसे पहले गांव पड़ता था उसकी दूरी नदी से तीन किलोमीटर दूर थी । बहुत दूर - दूर से लोग इस पर से उस पार जाया करते थे और बहुत दूर - दूर से उस पार से इस पार भी आया करते थे । आने - जाने के लिए कोई पुल या सेतुबांध नहीं था । लोग नाव के माध्यम से इस पार और उस पार हुआ करते थे । तब सिर्फ एक ही नाव चला करती थी । जब दस बारह लोग नाव में एकत्रित हो जाते थे तब नाविक नाव को खोलता था । इसके लिए दो आप्शन थे । पहला आप्शन - अगर आप चाहें तो नांव में भी जा कर बैठ सकते हैं परन्तु नांव उसी समय खुलेगी जब यात्री पुरे हो जाएंगे । दूसरा आप्शन - जब दो तीन लोग होते थे तो अक्सर लोग घाट पर ही बालू पर बैठ कर परिचय - पर्वाचा और बातचीत कर के अन्य यात्रियों के इंतजार में समय व्यतीत करते थे । 
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 घाट पर एक आदमी खड़ा था जिससे नाव की दूरी लगभग पचास मीटर से उपर थी मतलब इतनी दूरी थी कि यदि पांच दस लोग आपस में सामान्य तरीके से बात - चीत करें तो वह बात नाविक को सुनाई नहीं पड़ने वाली थी । तभी एक आदमी घाट की ओर आता हुआ दिखाई दिया , पहले से जो आदमी वहां खड़ा था उसने उस व्यक्ति को अपनी ओर आने का इशारा किया वह आगन्तुक करीब आ गया । पहले से वहां मौजूद व्यक्ति ने आगन्तुक से पूछा - कहां जाना है ? 
div style="text-align: left;">आगन्तुक ने जवाब दिया - 
 उस पार जाना है । 
फिर पहले वाले व्यक्ति ने कहा - 
उस पार जाने में जान का जोखिम है । देखो मैं यहां सुबह से खड़ा हूं , लेकिन उस पार नहीं गया , क्यों कि जब मैं यहां आया तो नांव खुल चुकी थी । मैं छूट गया था और यही बालू पर बैठ कर नांव के वापस आने का इंतजार करने लगा । मेरी नज़र नांव पर ही लगी थी , जब नांव बीच धारे में पहुंची तो मैंने अपनी आंखों से देखा कि नाविक ने अपने पतवार से नाव को बड़ी तेजी से डगमगाया जिससे नांव पलट गई और जितने भी मुसाफिर नांव में बैठे थे सब पानी में डूब गए अभी तक किसी की लाश भी उपर नहीं आई है । ये नाविक खूंनी है , बहुत ही खतरनाक आदमी है । मैं तो इसके नांव में नहीं बैठुंगा भले ही यहीं रात काटना पड़े । मेरा काम था आप को बचाना अब आप की मर्जी आप चाहें तो नांव में जाकर बैठ जाएं । लेकिन मैं नहीं जा सकता मैं यही पड़ा रहुंगा । 
div style="text-align: left;">
ये सारी बातें सुन कर उस आदमी को भी डर लगने लगा था उसके भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करुं , तभी दो तीन आदमी और आ गये । उन लोगों को भी इसने बुलाया और नांव को डूबने वाली बात सभी को बताई । इसी तरह धीरे-धीरे पचासों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गयी परन्तु नाविक चुपचाप नांव में बैठा देखता रहा उसके समझ में नहीं आ रहा था कि लोग नांव में नहीं बैठ रहें हैं और भीड़ बढ़ती जा रही है । तभी एक आदमी फिर आता हुआ दिखाई दिया उसने भीड़ को देखा लेकिन वह भीड़ की ओर न जाकर बल्कि नांव की ओर बढ़ा चला जा रहा था । तभी वह व्यक्ति जिसने सभी को रोक कर भीड़ बना डाली थी तेजी से उसके पास पहुंचा और बोला - 
 अरे भाई कहां जा रहे हो ? 
उस पार जाना है । नांव में बैठने जा रहा हूं । तुम कहना क्या चाहते हो जल्दी बोलो मेरे पास समय नहीं है । 
उस आदमी ने भीड़ की ओर दिखाया और सारी कहानी सुनाई लेकिन उस व्यक्ति ने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर नांव में जाकर बैठ गया और नाविक से कहा कि नांव को खोलो । नाविक ने कहा कि मैं आप को अकेले कैसे लेकर चलूं मेरा खर्चा नहीं निकल पाएगा । तुम नांव खोल कर ले चलो तुम्हारे जितने ख़र्चे हैं वो सब मैं दुंगा । इस बात पर नाविक ने नांव को खोल दिया नांव आगे बढ़ने लगी और भीड़ की नज़र नांव पर टिकी हुई थी । सभी के अंदर इस बात की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि अब नांव बीच धारे मैं पहुंचने वाली है अब तो नाविक इसे डुबा देगा परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ नांव बीच धारे को पार कर चुकी थी । 
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 इस स्थिति को देख कर इस पर लोगों की चर्चाएं गर्माने लगी सभी को ऐसा एहसास होने लगा था कि हमें बेवकूफ बनाया गया है । सभी लोग उस पहले वाले व्यक्ति को तलाशने लगे लेकिन उसका कहीं कुछ पता नहीं नहीं था वह तो अपना काम कर चका था । वह भीड़ को चकमा देकर उसी समय निकल चुका था , जब नाविक ने नांव को खोल कर आगे बढ़ा दिया था । नाविक ने नांव में बैठे व्यक्ति से पूछा - 
साहेब वहां घाट पर काफी भीड़ थी लेकिन आप ने किसी को न तो बुलाया और न ही किसी के आने की प्रतिक्षा की सारा खर्चा स्वयं भरने के लिए सहमत हो गए । 
नव में बैठे व्यक्ति ने कहा - 
उन्हें तुम्हारे नांव से उसपर नहीं जाना था वे लोग किसी के बहकावे में फंसे हुए थे । मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं वहां इकट्ठा हुए लोगों से स्पष्टीकरण मांगू तुम्हारी नांव को खाली देख कर ही मैं समझ गया था कि इन्हें किसी बात की संका है , यात्रा करने वाले नांव में आकर अपनी जगह लेते हैं खड़े रह कर बात नहीं करते इस लिए मैंने भी ध्यान नहीं दिया । 
 नांव अब शाहिल के करीब होने वाली थी नांव में बैठे व्यक्ति ने नाविक से पूछा - 
एकं दिन में कितना कमा लेते हो..... ? 
साहेब उतना ही कमा पाता हूं कि शाम को राशन खरीद कर ले जाता हूं तो पुरा परिवार खाता है और फिर सुबह में सभी लोग खा लेते हैं , मैं भी खा कर नांव चलाने आ जाता हूं ........ । 
कबसे ये काम कर रहे हों ? 
ये काम पहले मेरे दादा जी करते थे , उनके मरने के बाद मेरे पिता जी करने लगे , पिता जी के गुजर जाने के बाद अब मैं करता हूं , क्या करूं साहेब........ । 
क्या तुम्हारे पास खेती भी नहीं है ? 
नहीं साहेब कुछ भी नहीं है तीन पुस्तों से खर पतवार की मड़ई में रहते चले आ रहे हैं । 

 अब नांव किनारे पर आकर रुक चुकी थी दोनों नांव से उतर गए नाविक चुपचाप खड़ा रहा व्यक्ति ने कहा - 
मेरे साथ चलो...... । 
न जाने क्यों नाविक कोई जवाब नहीं दे पाया और चुपचाप उस व्यक्ति के साथ चल पड़ा कुछ देर बाद दोनों एक आलिशान हवेली में प्रवेश कर गए । हवेली पहुंचने के बाद नाविक को पता चला कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि एक बादशाह हैं । 
 बादशाह ने नाविक से कहा कि तुम्हारी प्रतिक्षा यहां आकर अब समाप्त हो चुकी है । अब तुम हमारे मंत्री मंडल में मेरे विषेश मंत्री रहोगे , तुम्हें एक बंगला रहने के लिए दिया जाता है और जितना खेती चाहो उसे अपने लिए करवा सकते हो , तुम्हारी नांव हमारे महल में लाने के लिए लोग जा चुके हैं अब वह नांव तब निकलेगी जब मुझे खुद नवकाबिहर करना होगा और उस समय भी नांव तुम्हीं चलाओगे , मेरे आदमी तुम्हारे परिवार को भी लेने जा चुके हैं अब तुम अपने बंगले में जाओ जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं वहां अभी तुम्हारा परिवार भी आ जाएगा ......... । 
बादशाह ने अपने एक दरबारी के साथ नाविक को बंगले पर भेज दिया । 

 निष्कर्ष :----- हमें किसी की बातों में फंसने , उलझनें या बहकावे में आने से पहले सत्यता का पता जरुर कर लेना चाहिए लोगों की देखी देखा में खुद भी अंधविश्वासी नहीं हो जाना चाहिए । अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए दृढ़संकल्पित होना चाहिए । यह सत्य है कि डर के आगे ही जीत है ।

शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

सवाल और जवाब

मैंने तो सिर्फ एक सवाल ही किया है ।

अब उसपर लोग बहसबाजी करना शुरु कर देते हैं । कुछ लोग तो अपने ही सवाल खड़े कर देते हैं और खुद ही जवाब भी देना शुरु कर देते हैं ।

कुछ लोग तो सवाल को हीं गलत साबित करने में लग जाते हैं । कुछ लोग सवाल का जवाब ऐसे देते हैं जो समझ से बाहर हो जाता है  ।  कुछ लोग तो ऐसा जवाब देते हैं , जो सवाल से उनके जवाब का कोई संबंध ही नहीं रखता , कुछ लोग जवाब न दे कर कहानियां सुनाने लग जाते हैं  ।

आज इस दौर में सब को कुछ न कुछ बोलना जरूरी हो गया है । खामोशी साधे हुए किसी के विचारों को या किसी की भावनाओं को सुनना बोझ लगने लगा है ।

सभी अपनी - अपनी काबिलियत पेश करना सुरु कर देते हैं । मैंने तो एक लाईन का सवाल पूछा है बस । आप सिर्फ मेरे सवाल का जवाब दीजिए मुझे कहानियां मत सुनाइए , अगर मैं संतुष्ट हो जाऊंगा तो ठीक , वर्ना मैं खुद कहुंगा कि मैं अपने सवाल पर मिलने वाले जवाब से संतुष्ट नहीं हूं  , यहां उपस्थित लोगों में कोई और अगर जवाब दे सके तो दे सकता है ।

ज्यादातर लोग ऐसे भी होते हैं जो सवाल की जगह ऐसी बातें सुनाने लगते हैं कि सवाल करने वाला अपने सवाल को भूल जाता है और वहां मौजूद लोग भी सवाल को भूल जाते हैं ।

आगे चलकर यह बात फिर एक बार उठती है कि यह बात किस बात पर शुरू हुई थी । सवाल क्या था ? किसी को याद नहीं । जवाब देने वाले को भी याद नहीं । सुनने वालों को भी याद नहीं और सवाल पूछने वाले को भी याद नहीं ।

आखिर यह सब क्या है ?

यह सब सिर्फ अपनी काबीलियत जाहिर करने की होंड़ है और कुछ भी नहीं है । अपनी काबिलियत में लोगों को अपने दिशा से भटकाना , सवाल करने वाले को उसके सवाल से भ्रमित कर के उल्झा देना । जिसमें सिर्फ समय बर्बाद होता है । ऐसे लोगों से या तो बचें या फिर उन्हें बात करने का सही तरीका क्या होता है यह बताएं । लगभग 95% पंचानबे पर्सेंट लोगों को बात करने का सही तरीका ही नहीं मालूम है ।

एक आदमी अगर किसी बात को शरु करता है ,  तो उसकी बात पूरी सुने बगैर ही , दूसरा आदमी पहले वाले आदमी की बात काट कर अपनी बात पेश कर देता है । 

चुपचाप रह कर सुनने को कहा जाए तो यह कहते हैं कि मुझे इनकी इस बात पर एक बात याद आ गई है उसे सुना दे रहा हूं वरना मैं भूल जाऊंगा ।

अगर इतना ही यादास्त कमज़ोर है तो बात करने की जरुरत ही क्या है ? चुपचाप बैठे रहना चाहिए लेकिन ऐसे ही लोग होते हैं कि जो किसी बात चित या बैठक को अंतिम मुकाम तक पहुंचने नहीं देते हैं ।

जब कि यह सभ्य आदमी का काम नहीं है सभ्यता और समझदारी इस बात में है कि जबतक पहले वाले व्यक्ति की बात पूरी न हो जाए तब-तक किसी के बातों के बीच में अपनी कोई बात नहीं पेश करना चाहिए ।

ऐसी परिस्थितियों में बात काटने वाले को प्रेम से एक बार समझा देना जरुरी होता है ।

अगर मान जाते हैं तो उन्हे अपने बीच बैठाएं  , सभ्यता आ गयी  हो तो आवश्यकता पड़ने पर खुद भी उनके बीच बैठें अगर इसके बाद भी कोई अपनी आदत से मजबूर हो तो समझदारी इस बात में है कि आप खुद ही चुप रहें अपना कोई सवाल ही न पेश करें ।

मूकदर्शक बने सुनते रहिये यह भी एक कला है ।

इसमें भी जानकारियां प्राप्त होतीं हैं और लोगों की परख भी होती है । आप की खामोशी जब लोग तोडवाएंगे तो आप की हर बात लोगों पर बीस पड़ेंगी क्यों कि आप ने खामोशी पुर्वक सभी के बातों को सुना है और सभी के जज्बातों को समझा है । इस लिए आप की बातें ही निर्णायक होंगी  ।


आशा करता हूं कि आप को मेरे लेख पसंद आए होंगे फिर भी यदि आप को कोई सुझाव देना हो तो कमेंट बॉक्स में जा कर दे सकते हैं । ब्लॉग को फालो करने और कमेंट करने से मुझे प्रेरणा प्राप्त होगी ।

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

तुम कौन हो ?

तुम जिस्म के एक खुबसूरत इमारत में हो जो खंडहर भी होता है और गिरता टूटता भी है ।
तुम ईंट और पत्थरों से बनाए हुए मकान की मियाद जान और समझ सकते हो लेकिन जिस्म रुपी मकान की किसी भी तरह की कोई भी मियाद नहीं है ।
इस मकान का कब क्या होना है न तो इसे जान सकते हो और न कभी समझ सकते हो ।

पूरी जिंदगी मैंने तुम्हारे खुशियों के लिए संघर्ष करते - करते मर गया लेकिन फिर भी तुम्हें मेरी कदर समझ में नहीं आई । जिंदगी भर तुम्हें सिर्फ यही एहसास रहा कि मैं बेकार हूं तुम्हारे किसी काम का नहीं हूं , लेकिन आज मेरे मर जाने के बाद तुम्हें मेरी कदर उस समय आई जब मेरे छोड़ जाने वाले संघर्षों को तुम्हें करना पड़ रहा है ।

अब तुम सोचते हो कि काश वो दुनिया में रहे होते लेकिन तुम्हें शायद यह नहीं पता था कि मैं दुनिया से जाने के लिए ही तो आया था ।
तुम को भी एक दिन इस दुनियां से चले जाना है और जाने वालों को आज तक दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पाई है और न तो कभी रोक पायेगी ।

तुम्हारे चाहने से कोई फायदा नहीं क्यों कि जाने के बाद फिर वापस आने का कोई रास्ता नहीं है ।
तुम मेरी बातों को और मेरे संघर्षों को याद कर सकते हो और लोगों को बता सकते हो , लोगों को सुना सकते हो , मेरे समाधिस्थल ( कब्र ) पर आकर दो आंसू टपका सकते हो उससे ज्यादा और कुछ नहीं कर पाओगे ।

अगर मुहब्बत है मुझसे तो मेरे बताए हुए रास्तों पर चलना । अपनें मां , बाप , भाई , बहन , रिश्तेदारों और दोस्तों की इज्जत करना , कभी रुठना मत ।
तुम्हारी औकात जैसी हों उसके मुताबिक जो परेशानियों में हों उनकी मदद करना , इससे तुम्हें दुनिया से जाने का दुःख नहीं होगा ।

इस दुनियां में आता कौंन है ? और 
इस दुनियां से जात कौन है ?
सब आत्मा ( रुह ) का खेल है जिस्म तो यहां मिट्टी से बनता है और मिट्टी में मिला भी दिया जाता है ।
आत्मा ( रुह ) इसमें आती है और फिर वही आत्मा ( रुह ) ही निकल कर इस दुनियां से चली जाती है ।
यहां की चीज यहीं रह जाती है और
वहां की चीज वहां चली जाती है ।

जब तुमने ही मुझे दफ़नाया ।
जब तुमने ही मुझे फूंका ।
तो फिर तुम्हें मुझसे मोह कैसा ।
अगर यह समझते हो कि यह दुनियां की एक परंपरा है तो उसी तरह सारे रिश्तों की एक परंपरा है जिसे इंसान बन कर इंसानियत और मुहब्बत से निर्वाह करते हुए इस दुनियां से जाना ।
ऐसा कभी मत करना की तुमसे किसी का दिल टूटे या किसी को दिली तकलीफ हो ।

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं ।
सामां हैं सौ बरस के पल की खबर नहीं ।।


मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

धुरियापार और इससे जुड़े सैकड़ों गांवों के लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं ।

यह धुरियापार से उरुवा बाजार जाने वाली सड़क हैं ।

जो उरुवा बाजार चौराहे से दक्षिणांचल में बेलघाट तक जाती है और धुरियापार से पुर्वांचल में गोला बाजार से मिलती है , जिसकी हालत इतनी खराब है कि ऐसा लगता है जैसे 50 साल पहले वाली कच्ची सड़क की तरह हो चुकी है । इस सड़क के हर तीन मीटर पर खतरनाक गढ़े हैं । यह सड़क सैकड़ो गाँवों को और जिलामुख्यालय को , ब्लाक को , अस्पताल को , थाना को और मेंन बाजार को भी जोड़ती हैं । 


यह देश आज़ादी के बाद से धुरियापार विधानसभा में था परंतु अब चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में परिवर्तित हो गया हैं । मा० विधायक जी और मा० सांसद जी को यह रोड बिल्कुल ही ध्यान में नहीं आता है । अब 15 साल पूरे होने वाले हैं जल्द ही 2024 का चुनाव भी होना है । नेता और प्रत्याशी लोग फिर इसी सड़क से अपने लग्जरी गाड़ियों से जनता से वोट लेने आएंगे और चुनाव के बाद लापता हो जायँगे । लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह रोड इसी हालत में रह जायेगी । इस सड़क के खराब हालात में ही रह जाने में सत्ताधारियों के साथ - साथ विपक्ष की भी बराबर की लापरवाही हैं यह लोग भी ज़मीनी मुद्दे को छोड़ कर बस फ़ोटो बाजी और अपने चमचों में मस्त हैं । कुछ ठिकेदार कभी भूले भटके कहीं से सड़क पर दिख जाते हैं तो वे सिर्फ सड़क पर महीन गिट्टी बिछाकर सड़क को काला कर के चलते जाते हैं वो भी पूरे सड़क को नहीं बल्कि कुछ - कुछ जगहों पर जिसका कोई मानक पूरा नहीं होता ।

सड़क को मानक के अनुसार फ़िर से बनाने की बहुत जरुरत है क्यों कि अब हर दूसरे दिन भयंकर हादसे भी होने लगे हैं । 


धुरियापार मार्केट से उरुवा बाजार चौराहे की दूरी सिर्फ तीन किलोमीटर है जिसका किराया बीस रुपया है ।

इस किराये को किसने लागू किया इसका कुछ पता नहीं

 

विषेश आग्रह :- 

अगर वर्तमान सरकार फिर से धुरियापार को विधानसभा के रुप में लौटा दें तो जनमानस के बीच बहुत ही हर्ष का माहौल होगा और सत्ता का मान सम्मान एवं बोलबाला में वृद्धि भी होगी ।

दूसरा कारण कि हमारा धुरियापार हमारे मुख्यमंत्री जी के जिले में ही पड़ता है ।

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

जीवन की सार्थकता क्या है ?

जीवन की सार्थकता का अर्थ है , जीवन को एक उच्चतम लक्ष्य या अपनी अभिलाषाओं के अनुसार जीवन को जीना । जीवन की सार्थकता में प्रत्येक व्यक्ति की सार्थक लक्ष्य एवं अभिलाषाएं भिन्न - भिन्न हो सकती हैं , क्यों कि हर व्यक्ति का जीवन दृष्टि और मूल्य अलग - अलग होते हैं । जीवन की सार्थकता के लिए पांच विशेष बिन्दु हैं , जैसे  : -- 


1 - आत्म-ज्ञान  : -- 

जीवन की सार्थकता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने आत्मबल को पहचाने , अपनी शक्तियों और कमजोरियों को एहसास करे , अपनी रुचि , अपने शौक , अपनी भावनाओं और विचारों को समझे । आत्म-ज्ञान से व्यक्ति अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित कर सकता है और अपने जीवन को उसके अनुरूप बना कर ढाल सकता है ।


2 - आत्म-विकास  : -- 

जीवन की सार्थकता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने आत्मबल का विकास करे , अपनी शक्तियों का सदुपयोग करे , अपनी कमजोरियों को दूर करे , अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाए , अपने व्यक्तित्व को निखारे । आत्म-विकास से व्यक्ति अपने जीवन को अधिक समृद्ध , सुखी और सफल बना सकता है ।


3 - आत्म-निर्भरता. : -- 

जीवन की सार्थकता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने आत्मबल पर भरोसा करे , अपने निर्णय और कार्यों के लिए जिम्मेदारी ले , अपने जीवन को अपनी इच्छा और प्रयास के अनुसार संचालित करे । आत्म-निर्भरता से व्यक्ति अपने जीवन को अधिक स्वतंत्र , सम्मानित और गौरवशाली बना सकता है ।


4 - आत्म-सेवा  : -- 

जीवन की सार्थकता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने आत्मबल के विकास के लिए आत्म सेवा करे , अपने शरीर , अपने मन , अपने मस्तिष्क और अपने आत्मबल का ख्याल रखे , अपने स्वास्थ्य , अपनी सुख और शांति का ध्यान रखे , अपने जीवन को अधिक आनंदमय और आरामदायक बनाए । आत्म-सेवा से व्यक्ति अपने जीवन को अधिक प्रसन्न , और शांतपूर्ण बना सकता है ।


5 - परोपकार. : -- 

जीवन की सार्थकता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति परोपकार करे , अपने परिवार , अपने समाज , अपने देश और मानवता की सेवा करे , अपने सहयोग , अपनी सहानुभूति और अपने समर्पण का परिचय दे , अपने जीवन को अधिक उपयोगी और उदार बनाएं । परोपकार से व्यक्ति अपने जीवन को अधिक सार्थक , सम्मानित और श्रेष्ठ बना सकता है ।


इस प्रकार, जीवन की सार्थकता व्यक्ति के आत्म-ज्ञान , आत्म-विकास , आत्म-निर्भरता , आत्म-सेवा और परोपकार के आधार पर निर्भर करती है । व्यक्ति जब इन पांचों तत्त्वों को अपने जीवन में समन्वित रूप से आत्मसाक्षात के द्वारा अपनाता है , तब जाकर उसका जीवन सार्थक होता है । जीवन की सार्थकता व्यक्ति को अपने जीवन का अर्थ समझने , अपने जीवन का मूल्य बढ़ाने और अपने जीवन का आनंद लेने और देशहित , समाज हित , लोकहित , के साथ ही साथ समग्र हितों में मदद करती है ।

मंगलवार, 21 नवंबर 2023

आर्थिक आज़ादी किसे कहते हैं ?

आर्थिक आज़ादी की एक अवस्था होती है , जिसमें व्यक्ति या समूह अपनी आर्थिक निर्णय और क्रियाएं अपनी स्वतंत्रता से लेता है , बिना किसी बाहरी प्रतिबंध या पारिवारिक प्रतिबंध के । इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत और आर्थिक स्वतंत्रता होती है , जिसका अर्थ है कि वे अपने वित्तीय निर्णयों , आय , व्यय , और निवेशों को स्वयं से करते हैं।

आर्थिक आज़ादी में शामिल तत्वों में व्यक्ति की कमाई , निवेश , खर्चे , और बचत की स्वतंत्रता भी स्वयं की ही शामिल होती है । यह व्यक्ति को उसकी आर्थिक स्थिति पर नियंत्रण रखने का अधिकार प्रदान करती है और उसे अपने लक्ष्यों और अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए आत्मनिर्भर बनाती है ।

इसे अर्थशास्त्र में आत्मनिर्भरता या स्वाधीनता के रुप में भी व्याख्या किया जा सकता है , जिससे सामाजिक और आर्थिक रुप से समाज में सकारात्मक परिवर्तन भी होता है।

आर्थिक आज़ादी में एक अवस्था और भी आती है जिसमें व्यक्ति अपने आर्थिक कैलकुलेशन से बहुत ऊपर उठ जाता है , तब उसे खुद भी याद नहीं रहता है कि उसके पास कितना धन है ।

ऐसी परिस्थितियों में उसे सिर्फ इतना ही जनना होता है कि मुझे कितना धन देना है और उससे कितना धन मुनाफे के रुप में आएगा  ।

इसी परिस्थितियों में एक व्यक्ति और आता है जिसके पास कुछ भी नहीं होता है न घर न परिवार ये भी अपने आप में मस्त रहता है ।

जैसे उपरोक्त व्यक्ति अपनी आर्थिक आज़ादी में मस्त हो जाता है वैसे ही यह व्यक्ति अपने फ़क़ीरी में मस्त हो जाता है दोनों अपने - अपने स्थान पर लक्ष्यों से आगे शुन्यता में पहुंच जाते हैं ।

खाना भी लोग ही लेकर जाते हैं कोई देकर आता है तो कोई खिला कर आता है  ।


इस धरती पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्तियों को इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों से आशाएं जुड़ी रहती हैं । लोग जानते हैं कि यदि इनकी एक नज़र पड़ जाय तो कई पीढ़ियों तक किसी को कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।