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सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

एहसास

तुम्हारे एक ही अल्फाज़ ने ।
हमारी रुह तक को तुमसे ,
बांध रखा था ।

लेकिन अब ।

तुम्हारे एक ही अल्फाज़ ने ।
हमारी रुह से तुम्हारे रुह को ,
हमेशा के लिए आजाद कर गयी है ।

पहले मेरे जिस्म से सिर्फ ,
तुम्हारा ही साया बनता था ।
आज तुम्हारा जिस्म तो दूर ‌।

तुम्हारे रुह की परछाई भी ।
मुझे परायी और अजनबी ,
सी लगने लगी है ।
              " जावेद गोरखपुरी "

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