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मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

रियल लाइफ और रील लाइफ

एक है जो वक्त और हालात की मंजबूरी में 
पेट पालने के लिए मजदूरी करता है ।
" और "
एक है जो उन्हीं वक्त और हालात के मारे हुए 
मजदूरों की सुनहले पर्दे पर एक्टिंग कर के ,
शोहरत और दौलत दोनों कमाता है ।

कलाकार दोनों हैं ।
एक रियल लाइफ का हीरो है ।
एक रील लाइफ का हीरो है ।

रियल लाइफ के हीरो अक्सर ,
गुमनाम हो जाते हैं ।
लेकिन रील लाइफ के हीरो ,
उन्हीं की एक्टिंग कर के 
मशहूर हो जाते हैं ।
                        " जावेद गोरखपुरी "
                      

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

ज़िन्दगी की ख्वाहिशें

जिंदगी बहुत छोटी है ।
" और "
ख्वाहिशें बहुत बड़ी हैं ।

ख्वाहिशों को छोड़ दें ,
तो ज़िन्दगी बहुत बड़ी हो जाती है ।
ख्वाहिशों को पकड़ें तो ,
जिंदगी बहुत छोटी लगने लगती है ।

इसी छोड़ पकड़ में....। 
एक दिन दुनियां ही छूट जाती है ।
                     " जावेद गोरखपुरी "

रविवार, 12 अक्टूबर 2025

इंसाफ़

इन + साफ = इंसाफ़ ।
इंसाफ़ से " इन " अगर 
निकाल दिया जाए ,
तो इंसाफ नहीं रह पजाएगा ।
बल्कि सिर्फ साफ़ ही रह जाएगा ।

अब इस दौर में यही हो रहा है ।
जब कोई मजबूरी में किसी खास मुद्दे पर ,
या पंचायत के रुप में लोगों को बुलाया जाता है ।
तब समस्या पर ध्यान कम और वर्चस्व पर ध्यान ज्यादा रहता है ।

इन + साफ = इंसाफ़ ।
यही कारण है , कि जिसकी समस्या है ।
उसको दबा कर विपक्ष को पाक और साफ ,
कर दिया जाता है । इसे ही कहते हैं ।
सही तरीके से इंसाफ़ का होना ।
                                  " जावेद गोरखपुरी "

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

अपने और पराये

कहीं - कहीं पराये अपने हो जाते हैं ।
कहीं - कहीं अपने पराये हो जाते हैं ।।
परायों का अपना होना स्वाभाविक है ।

लेकिन जब अपने ही पराये हो जाएं ।
तो कैसा लगेगा ? दुःख तो तब होता है ।
जब इतना ही समझने में कभी-कभी 
उम्र निकल जाती है ।                      
                           " जावेद गोरखपुरी "

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

रिश्ते तोड़ दिए जाते हैं ।

रिश्ते खुद नहीं टूटते... । 
रिश्ते तोड़ दिए जाते हैं । 
वक्त और हालात के मुताबिक ।

रिश्ते खुद नहीं बनते... । 
रिश्ते बना लिए जाते हैं ।
वक्त और हालात के मुताबिक ।

वक्त किसी के बाप की ,
एकलौती जागीर नहीं है ।
वक्त चंद मिन्टों में..... , 
सब कुछ बदल कर 
रख देता है ।

तुम अपनी जिंदगी भर में ।
अपने बाथरूम के झरने में ।
जितना नहा कर भीगे होगे.. । 
तुम अपनी जिंदगी भर में ,
जितना बारिशों में भीगे होगे ।

उससे ज्यादा मैं..... , 
अपने कर्मों और अपने 
अनुभवों के पसीने से 
भीग चुका हूं ।
                 " जावेद गोरखपुरी "

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

फ़सल कोई और काटेगा

भारत देश में जो धार्मिक युद्ध चल रहा है ।
यह भय , भूख , बीमारी , ग़रीबी और 
बेरोज़गारी में ,
दिन प्रतिदिन स्प्रीट का काम करती जा रही है ।
गृह युद्ध पचास प्रतिशत क्रास कर चुका है ।
मरता क्या नहीं करता , वह दिन दूर नहीं जब 
गृह युद्ध अपने पूरे चरम सीमा पर पहुंच जाएगा ।

ऐसी परिस्थितियों में दो ही कार्य हो सकते हैं ।
या तो सार्वजनिक रुप से भारत में तख्तापलट ।
या तो संपूर्ण भारत पर दो से तीन धार्मिक ,
समुदायों का एक छत्र राज स्थापित हो जाएगा ।
परिस्थितियां और हालात तुम पैदा कर चुके हो ,
लेकिन फ़सल कोई और काटेगा ।
                                    " जावेद गोरखपुरी "
                                    

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

हम , तुम

किसी छोटे या बड़े लेख में , जब -
हम , तुम , मैं , आप , वो , उसने ।
जैसे शब्दों का प्रयोग होता है ।
तब यह शब्द कैरेक्टर के रुप में ,
किसी चीज़ को दर्शाने के लिए उपयोग होता है ।

जब इन्हीं शब्दों का उपयोग ,
व्यक्तिगत तौर पर किया जाता है ।
जैसे - 
पत्र लिखने में ।
मैसेज लिखने में ।
आपस में बात करने पर ।
तब यह शब्द कैरेक्टर से बदल कर ,
व्यक्तिगत हो जाता है ।
जो खुद पर लागू होने लगता है ।

इस बात को बहुत सारे लोग जानते हैं ।
लेकिन मुझे लिख कर इस लिए समझाना पड़ा ।
कि , कुछ लोग समाज में ऐसे भी हैं । 
जो किसी के लिखे हुए आर्टिकल को , 
उसी के ऊपर समझने लगते हैं ।
                                      " जावेद गोरखपुरी "

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

किताब की गणित

किताब की गणित में ।
" और "
मोहब्बत की गणित में ।
बहुत फासला होता है ।

किताब के गणित में ।
दो मेसे एक जाएगा ,
तो , एक बचेगा ।

मोहब्बत के गणित में ।
दो मेसे एक जाएगा ,
तो , कुछ नहीं बचेगा ।
सब कुछ ज़ीरो हो जाता है ।
          " जावेद गोरखपुरी "

गुरुवार, 25 सितंबर 2025

वक्त के तूफान

मुझे उस पेड़ से बहुत मोहब्बत थी ।
क्यों कि उस पेड़ को मैंने लगाया था ।
उसकी हर डालें मेरे हाथ पैर जैसे लगते थे ।
लेकिन वक्त के तूफान ने कइ डाल तोड़ दीं ।
मुझ पर बेबसी और खामोशी सी छा गई ।
वक्त के आए हुए तूफान का असर ,
सभी को झेलना पड़ता है ।

लेकिन कुछ लोग तो पेड़ को जड़ से काट देते हैं ।
जब कोई पेड़ कटता है , तो ऐसा लगता है कि ,
पेड़ को नहीं मेरे , जिस्म को काटा जा रहा है ।
इस लिए मैं सिर्फ इतना ही कहुंगा , कि -
पेड़ को काटने से पहले ,
कहीं कुछ पेड़ लगा दिया करो ।
यह तुमसे ज्यादा कुछ लेता नहीं है ।
ज़रुरत से ज्यादा , बहुत कुछ देता है ।
                                    " जावेद गोरखपुरी "

रविवार, 21 सितंबर 2025

पायेदार

अब न पाया है और 
अब न पायेदार है ।

देश का बच्चा, बच्चा 
सिर्फ , बकायेदार है ।।
    " जावेद गोरखपुरी "