हमारी रुह तक को तुमसे ,
बांध रखा था ।
लेकिन अब ।
तुम्हारे एक ही अल्फाज़ ने ।
हमारी रुह से तुम्हारे रुह को ,
हमेशा के लिए आजाद कर गयी है ।
पहले मेरे जिस्म से सिर्फ ,
तुम्हारा ही साया बनता था ।
आज तुम्हारा जिस्म तो दूर ।
तुम्हारे रुह की परछाई भी ।
मुझे परायी और अजनबी ,
सी लगने लगी है ।