हम सब ज़िंदगी में भाग रहे हैं , बेहतर नौकरी ,
ज़्यादा पैसा , बड़ी चीज़ें और अपने सपनों को
हासिल करने के चक्कर में , लेकिन
इस भाग - दौड़ में , हम रुकना कब भूल गए
यह सोचने का समय ही नहीं मिला ?
ज़रा सोचिए : -
हम कल की चिंता में इतने डूबे रहते हैं ,
कि आज को पूरी तरह जी नहीं पाते हैं ।
हम दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश में
अपनी असली खुशी को अनदेखा कर देते हैं ।
हम मोबाइल स्क्रीन पर इतनी ज़िंदगियाँ देखते हैं
कि अपनी ख़ुद की ज़िंदगी जीना भूल जाते हैं ।
क्या हमने अपनी ज़िंदगी का रिमोट कंट्रोल किसी और के हाथों में सौंप दिया है ?
अभी , एक पल के लिए रुकिए ।
फ़ोन नीचे रखिए । बाहर देखिए ।
अपनी साँसों को महसूस कीजिए ।
जीना सिर्फ़ साँस लेना ही नहीं है ,
बल्कि उस पल को महसूस करना है ,
जो अभी ' आप के ' पास है ।
क्या आप सिर्फ़ मौजूद हैं , या जी रहे हैं ?
सवाल : -
आप अपनी ज़िंदगी के सबसे छोटे , लेकिन
सबसे ख़ुशी भरे पल को कैसे परिभाषित करेंगे ?
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